Friday, May 1, 2009

अक्षय पुण्यों का त्योहार है अक्षय तृतीया

किसी भी शुभ कर्म के लिए काफी पवित्र माने जाने वाले अक्षय तृतीया पर्व पर हिन्दू श्रद्धालु नए निवेश या दान आदि कर्म को फलदायक मानते हैं। मान्यता है कि इसी दिन त्रेतायुग की शुरुआत हुई थी और महर्षि वेद व्यास ने भी इसी दिन महाभारत लिखनी शुरू की थी। इस बार सोमवार को अक्षय तृतीया का त्योहार है और लोगों में इसको लेकर अभी से ही काफी उत्सुकता है।

धर्म विशेषज्ञों के अनुसार मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन किए जाने वाले कामों और दान का फल अक्षय रहता है अर्थात कभी नहीं मिटता। इसी कारण लोग इस दिन विभिन्न वस्तुओं का दान करते हैं। हिन्दू त्योहारों और वृक्षों के बारे में कई पुस्तकें लिख चुके लखनऊ के राधाकृष्ण दुबे के अनुसार अक्षय तृतीया पर्व वैशाख मास में शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन पडता है।

दुबे ने कहा कि यह भी मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन विष्णु भगवान के अवतार परशुराम का जन्म हुआ था। उन्होंने कहा कि पूरा वैशाख माह ही भगवान विष्णु से संबंधित माना जाता है। भगवान विष्णु को परोपकार बहुत प्रिय है, इसलिए श्रद्धालु पूरे वैशाख मास विशेषतौर पर अक्षय तृतीया के दिन दान करते हैं, जो परोपकार ही है।

उन्होंने कहा कि आजकल अक्षय तृतीया पर सोना, चांदी और आभूषण खरीदने का चलन शुरू हो गया है। इस चलन का कोई शास्त्रीय आधार नहीं है। यह चलन त्योहारों के व्यवसायीकरण के अलावा और कुछ नहीं है।

दिल्ली के राजकीय विद्यालय में संस्कृत के अध्यापक और कर्मकांडी पंडित बालकृष्ण चतुर्वेदी के अनुसार अक्षय तृतीया पर्व चूंकि गर्मी के मौसम में पडता है इसलिए इस पर्व पर ऐसी चीजों के दान का महत्व अधिक है जो गर्मियों के अनुकूल हो। उन्होंने बताया कि इस पर्व पर लोग प्राय: मिट्टी के बने घडे, सुराही, मीठा शरबत, सत्तू,खरबूजा और हाथ के पंखे आदि दान करते हैं। उन्होंने कहा कि कुछ लोग इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करना पवित्र मानते हैं।

चतुर्वेदी ने कहा कि इस दिन दान करने से हजार गुना फल मिलने की मान्यता है। संभवत:इसी मान्यता के चलते अक्षय तृतीया के दिन विवाह कराना पवित्र माना गया है। हिन्दू धर्म में विवाह को भी कन्या दान की संज्ञा दी जाती है। यही वजह है कि राजस्थान में बहुत से लोग इसी दिन विवाह करना पसंद करते हैं।

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