Tuesday, September 11, 2012

प्राचीन श्री कल्कि विष्णु मन्दिर - सम्भल


 भगवान श्री कल्कि की अवतार भूमि सम्भल में स्थित प्राचीन श्री कल्कि विष्णु मन्दिर का इतिहास भी बहुत रोचक व अनोखा है। कल्कि नगरी सम्भल में भगवान श्री कल्कि विष्णु का यह मन्दिर अपने वास्तु शास्त्र, अपने श्री विग्रह, अपनी वाटिका, अपने साथ स्थित भगवान शिव के कल्केश्वर रूप और अपने शिखर पर बैठने वाले तोतों के कारण अद्भुत है। भगवान श्री कल्कि के मन्दिर में स्थित श्री विग्रह के वक्ष स्थल से निकलता तेज आलौकिक एवं दर्शनीय है। भगवान के इस मन्दिर में मूर्ति को स्पर्श करना मना है, और भगवान की नित्य पूज्य और भक्तों द्वारा लाए गए प्रसाद का भोग पुजारी जी ही करा सकते हैं, जैसा कि दक्षिण भारत के अधिकांश मंदिरों में होता है। इस मन्दिर में मुख्य मन्दिर के निकट ही एक शिवालय भी स्थित है जिसमें भगवान शंकर की मूछों वाली प्रतिमा अपने आप में अेकेली है।

          इस मन्दिर का इतिहास भी सम्भल के इतिहास की भांति पौराणिक है। सम्भल के पौराणिक तीर्थों और मन्दिरों व कूपों के साथ मानचित्र में इसका उल्लेख ‘मनुश्री कल्कि मन्दिर’ के नाम से मिलता है। जो सम्भल के केन्द्र में स्थित हरि मन्दिर के निकट दर्शाया गया है। लेकिन मन्दिर की वर्तमान स्थिति का सम्बन्ध होल्कर साम्राज्य से है। जिसकी कथा कुछ इस प्रकार है।

          एक समय इन्दौर राज्य के राजा अपने दल के साथ नवाब रामपुर के निमंत्रण पर रामपुर जा रहे थे। मार्ग के बीच उनका दल रास्ता भटक गया और वह सम्भल के निकट पहुँच गया। राजा ने मंत्री से कहा कि वह किसी राहगीर से सही मार्ग मालूम करें। संयोग से एक ब्राह्मण उधर से गुजर रहे थे, मंत्री जी ने उन्हें बुलाकर राजा के समक्ष मार्ग के बारे में जानकारी ली। तत्पश्चात् राजा ने ब्राह्मण से पूछा कि आप क्या करते हैं, और उनका नाम व पता क्या है। ब्राह्मण देवता ने अपना नाम, पता बताने के पश्चात् बताया कि वह ज्योतिष का कार्य करते हैं। तब राजा ने कहा कि वह उनकी रामपुर यात्रा के सम्बन्ध में कुछ बतायें। तब पण्डित जी ने कहा कि उनकी रामपुर यात्रा के प्रवास की समाप्ति पर नवाब रामपुर उन्हें भूरे रंग का हाथी भेंट में देंगे। इसके बाद राजा अपनी यात्रा पर आगे बढ़ गये।

         और विधि के अद्भुत संयोग से इन्दौर नरेश को उनकी यात्रा की समाप्ति पर नवाब रामपुर ने उन्हें भूरे रंग का हाथी भेंट में दिया। राजा विस्मित हो उन्हीं पण्डित जी के विषय में सोचने लगे। वह फिर अपने दल के साथ सम्भल लौटे और अपने मंत्री द्वारा पण्डित जी को खोज कर बुलाया। उन्होंने कहा कि हे ब्राह्मण श्रेष्ठ आपकी भविष्यवाणी बिल्कुल सच निकली। हमें नवाब रामपुर ने भूरे रंग का हाथी ही भेंट में दिया है। हम आपकी ज्योतिष विद्या से बहुत प्रभावित हैं। हम चाहते हैं कि आप सपरिवार हमारे साथ इन्दौर चलें और हमारे राज ज्योतिषी बनें।

          राजा के बहुत आग्रह पर उन्होंने यह प्रस्तव स्वीकार कर लिया। इस प्रकार उन्होंने इन्दौर में अपना काफी समय व्यतीत किया। राजा के देहान्त के बाद महारानी ने स्वयं शासन संभाला। जब एक लम्बी अवधि बीत गई, तब पण्डित जी को अपने जन्म स्थान सम्भल की स्मृति प्रबल हो आई और उन्होंने रानी से वहाँ जाने की अनुमति मांगी। रानी ने अनुमति प्रदान करते हुए कहा वह अपने गृह नगर के लिए कुछ चाहते हैं तो मांग लें। पण्डित जी ने कहा हे रानी ! अगर आप कुछ देना ही चाहती है तो सम्भल के प्राचीन श्री कल्कि मन्दिर का जीर्णोद्धार करवा दें क्योंकि सम्भल का हरि मन्दिर तो यवनों के अधिकार में चला गया है जिसकी कसक सम्भल के निवासियों को बहुत है और प्राचीन मनुश्री कल्कि मन्दिर जो कि हरि मन्दिर के परकोटे में स्थित है, अतः वही हरि मन्दिर का विकल्प बन सकता है। रानी साहिबा ने पण्डित जी की इस बात को मान लिया और इस प्रकार श्री कल्कि विष्णु मन्दिर वर्तमान स्वरूप को प्राप्त हुआ। यह रानी और कोई नहीं अपितु रानी अहिल्याबाई होल्कर की सासु माँ कृष्णा माँ साहिब थीं और वह पण्डित जी श्री कल्कि विष्णु मन्दिर के वर्तमान व्यवस्थापक और पुजारी पं0 महेन्द्र प्रसाद शर्मा के पूर्वज थे।



युगावतार भगवान श्री कल्कि


आज वर्तमान समय में सम्पूर्ण धार्मिक जगत श्री कल्कि भगवान के बारे में जानने को उत्सुक है। आज विश्व में मानवता त्राहि - त्राहि कर रही है और जो पापाचार बढ़ रहे हैं उनको देखकर बहुत कष्ट होता है। इस स्थिति में सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार भगवान के अवतार की ओर ध्यान जाता है। जैसे कि भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं - 

‘‘ यदा यदा हिधर्मस्य ग्लार्निभवति भारतः अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम, 

परित्राणय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्, धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे।’’

          अर्थात् जब - जब धर्म की हानि होती है, भूमि पर भार बढ़ता है तब-तब धर्म की संस्थापना के लिए, साधुजनों की रक्षा के लिए, दुष्टों के विनाश के लिए मैं युग-युग में अवतार लेता हूँ।

          भगवान सूर्य के प्रकाश की पहली किरण जब भारत की पवित्र भूमि को छूती थी तो सारा वातावरण पूजा की घंटियों और शंखनाद से गूंज उठता था। मंदिरों के पट खुल जाते थे और भगवान का अभिषेक सारे भारत में एक साथ आरम्भ हो जाता था। भारत भूमि ऋषिओं और देवताओं की भूमि है, इसके कण - कण में आध्यात्मिक चेतना है, जो भगवान का नाम लेकर जागती थी और भगवान का कीर्तन करते हुए सोती थी। महर्षि वेद-व्यास जी ने श्रीमद् भागवत् के 12 स्कन्ध के दूसरे अध्याय में स्पष्ट शब्दों में कहा है कि श्री कृष्ण जब अपनी लीला संवरण करके परम धाम को पधार गये उसी समय से कलियुग ने संसार में प्रवेश किया। उसी के कारण मनुष्यों की मति - गति पाप की ओर ढुलक गयी। धर्म कष्ट से प्राप्त होता है और अधः पतन सुखों से, इसलिए भोली भाली जनता को गिरने में देर नहीं लगी।

         सत्य सनातन धर्म शाश्वत धर्म है। भगवान का मानवता के उत्थान, दुष्टों के संहार, धर्म की संस्थापना और भक्तों की रक्षा के लिए पंच भौतिक संसार में साक्षात् होना ही अवतार कहलाता है। केवल भगवत् अवतार से ही धर्म की पूर्ण संस्थापना हो सकती है। महात्माओं के आने से केवल आंशिक रूप से ही सत्य की स्थापना हो पाती है।

          युग परिवर्तनकारी भगवान श्री कल्कि के अवतार का प्रायोजन विश्व कल्याण है। भगवान का यह अवतार ‘‘निष्कलंक भगवान’’ के नाम से भी जाना जायेगा। श्रीमद् भागवत महापुराण में विष्णु के अवतारों की कथाएं विस्तार से वर्णित हैं। इसके बारहवें स्कन्ध के द्वितीय अध्याय में भगवान के कल्कि अवतार की कथा कुछ विस्तार से दी गई, कहा गया है कि सम्भल ग्राम में विष्णुयश नामक श्रेष्ठ ब्राह्मण के पुत्र के रूप में भगवान कल्कि का जन्म होगा। वे देवदत्त नाम के घोड़े पर आरूढ़ होकर अपनी कराल करवाल (तलवार) से दुष्टों का संहार करेंगे तभी सतयुग का प्रारम्भ होगा।

‘‘ सम्भल ग्राम, मुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः
 भवने विष्णुयशसः कल्कि प्रादुर्भाविष्यति।।

          भगवान श्री कल्कि सत्य सनातन धर्म में प्राण पुरूष की भाँति स्थान रखते हैं। कलियुग में सतयुग की ओर युग की धारा को मोड़ने की सामथ्र्य भगवान के ऐसे ही तेजस्वी रूप में संभव है। आज मनुष्य हौर उसके द्वारा बुना हुआ सामाजिक ताना बाना इन सभी बुराईयों से ग्रसित हो गये हैं। जहाँ धर्म, सत्य, न्याय, कर्तव्य, मातृ-पितृ भक्ति, गौसेवा, ज्ञान, सुसंस्कार, वैदिक गरिमा, सच्चे ब्रह्मानुरागी और संतोषी ब्राह्मण और उनका सम्मान करने वाले वीर और आन वाले क्षत्रिय और समाज के हितैषी, दानी और उदार वैश्य, कर्तव्य पथ पर चलने वाले शूद्र और देवी शक्ति की प्रतीक नारि शुचिता पर टिकना बहुत कठिन हो गया है। आज धर्म के नाम पर तथाकथित धर्मगुरू अपने शिष्यों और भक्तों को ईश्वर के वास्तविक रूप का ज्ञान कराने की बजाए स्वय ईश्वर बन बैठे हैं। जब गुरू ही ईश्वर हो जाए, तब कैसे और कौन करायेगा हमें ईश्वर की पहचान ? अधर्म और गुरूडम को, असत्य और अन्याय को और अविश्वास और अश्रद्धा को समाप्त करने भगवान श्री विष्णु का अन्तिम अवतार सम्भल में होगा। समस्त विश्व का कल्याण इस अवतार का प्रायोजन है।

          भगवान श्री कल्कि निष्कलंक अवतार हैं। उनके पिता का नाम विष्णुयश और माता का नाम सुमति होगा। उनके भाई जो उनसे बड़े होंगे क्रमशः सुमन्त, प्राज्ञ और कवि नाम के नाम के होंगे। याज्ञवलक्य जी पुरोहित और भगवान परशुराम उनक गुरू होंगे। भगवान श्री कल्कि की दो पत्नियाँ होंगी - लक्ष्मी रूपी पद्मा और वैष्णवी शक्ति रूपी रमा। उनके पुत्र होंगे - जय, विजय, मेघमाल तथा बलाहक।

          भगवान का स्वरूप (सगुण रूप) परम दिव्य एवम् ज्योतिमय होता है। उनके स्परूप की कल्पना उनके परम अनुग्रह से ही की जा सकती है। भगवान श्री कल्कि अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड नायक हैं। शक्ति पुरूषोत्तम भगवान श्री कल्कि अद्वितीय हैं। भगवान श्री कल्कि दुग्ध वर्ण अर्थात् श्वेत अश्व पर सवार हैं। अश्व का नाम देवदत्त है। भगवान का रंग गोरा है, परन्तु क्रोध में काला भी हो जाता है। भगवान पीले वस्त्र धारण किये हैं। प्रभु के हृदय पर श्रीवत्स का चिह्न अंकित है। गले में कौस्तुभ मणि सुशोभित है। भगवान पूर्वाभिमुख व अश्व दक्षिणामुख है। भगवान श्री कल्कि के वामांग में लक्ष्मी (पद्मा) और दाएं भाग में वैष्णवी (रमा) विराजमान हैं। पद्मा भगवान की स्वरूपा शक्ति और रमा भगवान की संहारिणी शक्ति हैं। भगवान के हाथों में प्रमुख रूप से नन्दक व रत्नत्सरू नामक खड्ग (तलवार) है। शाऽं्ग नामक धनुष और कुमौदिकी नामक गदा है। भगवान कल्कि के हाथ में पांचजन्य नाम का शंख है। भगवान के रथ अत्यन्त सुन्दर व विशाल हैं। रथ का नाम जयत्र व गारूड़ी है। सारथी का नाम दारूक है। भगवान सर्वदेवमय व सर्ववेदमय हैं। सब उनकी विराट स्वरूप की परिधि में हैं। भगवान के शरीर से परम दिव्य गंध उत्पन्न होती है जिसके प्रभाव से संसार का वातावरण पावन हो जाता है।