Friday, October 22, 2010

दस श्रेष्ठ मुहूर्तो में मिलेगा खरीददारी का मौका

दीपावली के अवसर पर आगामी पंद्रह दिनों में दस मुहूर्तो में लोगों को खरीददारी का विशेष मौका मिलेगा। इसमें 30अक्टूबर को पुष्यनक्षत्र और 3नवंबर को धनतेरस के दो योग तो खरीददारी के लिहाज से महायोगहोंगे। धनतेरस पर बन रहा महायोगअगली बार 14साल बाद बनेगा।

खरीददारी के इन श्रेष्ठ मुहूर्तो की शुरुआत 22अक्टूबर शुक्रवार से होगी। जब लोग शरद पूर्णिमा में खरीददारी करेंगे। यह मुहूर्त शाम चार बजे के बाद शुरू होगा। इसके अलावा 24,25,28,29,30अक्टूबर, 2,3,4और 5नवंबर को भी कई ऐसे योग है, जो शास्त्रों में नया आइटम घर लाने के लिए श्रेष्ठ माने गए है। एक साथ आ रहे इन मुहूर्तो को लेकर उत्साही व्यापारी कहते हैं कि नवरात्रि से प्रारंभ हुआ खरीददारी का दौर इन मुहूर्तो में चरम पर रहेगा। अनुमान है कि वाहन, ज्वैलरी,प्रापर्टी, इलेक्ट्रानिक आइटम, गारमेंट्स, फर्नीचर, मोबाइल, सजावटी आइटम आदि की जमकर बिक्री होगी।

धनतेरस का दिन खरीददारी का महायोगमाना जाता है। बुधवार गणेश जी का वार है। इस दिन लोग खरीददारी को विशेष महत्व देते है। इस बार यह दोनों ही दिन एक साथ आ रहे हैं। जो खरीददारी में चार चांद लगा देंगे। ऐसा अवसर इसके बाद 30अक्टूबर 2024को बनेगा। यानी लोगों को फिर ऐसे शुभ दिन के लिए 14साल का लंबा इंतजार करना पडेगा। श्री शर्मा ने बताया कि शरद पूर्णिमा 22अक्टूबर से खरीददारी के मुहूर्तो की शुरुआत हो जाएगी। इसके बाद धनतेरस तक कई मुहूर्त ऐसे हैं, जिनमें लोग खरीददारी कर सकते हैं।


खरीददारी के शुभ मुहूर्त

22अक्टूबर शरद पूर्णिमा

24अक्टूबर रविवार, भडनीनक्षत्र

25अक्टूबर सर्वार्थसिद्धि योग

28 अक्टूबर सर्वार्थसिद्ध योग, रवि योग

29अक्टूबर सर्वार्थसिद्धि योग

30अक्टूबर पुष्यनक्षत्र

2नवंबर सर्वार्थसिद्ध योग

3नवंबर धनतेरस, सर्वार्थसिद्धि योग, बुधवार

4नवंबर नरक चतुदर्शी,हनुमान जयंती

5नवंबर दीपावली

6नवंबर गोवर्धनपूजा, सर्वार्थसिद्धि योग


दीपावली से पहले पुष्यनक्षत्र

दीपावली से पहले आने वाले पुष्यनक्षत्रों को शास्त्रों में विशेष महत्व दिया गया है। इस बार 5नवंबर को दीपावली से पहले 30अक्टूबर को पुष्यनक्षत्र का शुभ योग है। पुष्यनक्षत्र सभी नक्षत्रों का राजा होता है। यह दिन खरीददारी के लिए उत्तम है। व्यापारी भी इस दिन ही अपने बहीखातों और कलम की खरीददारी को शुभ मानते है।


पांच को ही मनेगी दीपावली

दीपावली की तिथि में उलटफेर को लेकर पंडितों ने एकमत से कहा है कि पांच नवंबर को दीपावली मनाई जाएगी। उद्यातिथि को लेकर कोई भ्रम नहीं रहना चाहिए। उनका कहना है कि तीन नवंबर को द्वादशी तिथि दोपहर 3.59बजे समाप्त होगी। इसके बाद धनत्रयोदशीव प्रदोषकालउसी दिन माना जाएगा। अगले दिन चार नवंबर को शाम 4.11बजे के बाद रूप चौदस की तिथि शुरू हो जाएगी। पांच नवंबर को दोपहर 1.04बजे तक चतुदर्शीकी तिथि के बाद दीपोत्सव का पर्व शुरू होगा। छह नवंबर को अन्नकूटमहोत्सव मनाया जाएगा।

Sunday, October 10, 2010

जीवन में पूर्णता ला रहा 10-10-10

10-10-10,यानिशक्ति, धर्म, ऊर्जा, ज्ञान, सत्ता बल और यशस्वी गुरुपदसे युक्त गुणों को पुष्ट करने का योग। शनि ग्रह से युक्त सदी के अंतराल में बनने वाले इस योग का पूर्णाक 5है। 10का स्वामी शनि है तो 5का सूर्य। इसीलिए दोनों के गुण व लक्ष्य भी बिल्कुल भिन्न हैं। पिता-पुत्र होने के बावजूद दोनों व्यावहारिक व वैचारिक रूप में एक नहीं हो सकते। लेकिन, 10अक्टूबर को रविवार पडने से यह योग सूर्य को पूर्णरूप से प्रभावी बना रहा है। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार प्रत्येक ग्रह के प्रभावी होने से पूर्व उसके लक्षण दिखने लगते हैं और ऐसा ही प्रत्यक्ष भी है।

अंकशास्त्र के अनुसार 10का अंक पूर्णता का प्रतीक एवं जीवन का आधार रूप है। यह संयम और इंद्रियों का निग्रह कर चेतना जाग्रत करने का अवसर प्रदान करता है। 10-10-10का मूलांक5और स्वामी बृहस्पति है, जो मनुष्य को आध्यात्मिक ऊर्जा प्राप्त करने की शक्ति देता है। 5के अंक को परमात्मा का उदर कहा गया है, जिसमें पृथ्वी गर्भस्थ है। कहते हैं कि विद्या, वित्त, आयु, विनय व निधन, ये पांच चीजें गर्भ में ही निहित हो जाती हैं। इसलिए पंचतत्वों से विद्यमान परमात्मा का स्वरूप हिरण्यगर्भ है और हम सभी पृथ्वी, जल, तेज, वायु व आकाश के रूप में हिरण्यगर्भ रूप परमात्मा के अंदर समाहित हैं।

आचार्य डा.संतोष खंडूडीकहते हैं कि पंचतनमात्राएं तत्व, स्पर्श, रूप, रस व गंध के रूप में प्रत्येक में विद्यमान हैं, जो ईश्वर को अपने भीतर धारण करने का मौका देती हैं। तभी मनुष्य ईश्वर की शक्तियों को प्राप्त कर सकता है, जो कि जाति, धर्म व परंपरा से अलग है। डा.खंडूडी के अनुसार 5का अंक इतना प्रभावशाली है कि प्राकृतिक प्रकोप, आतंरिककलह, किसी राज्य में सत्ता परिवर्तन, दुर्घटनाएं व जनसाधारण में भय का वातावरण कायम कर सकता है। इसलिए हमें संयम व इंद्रियों को निग्रह में रखकर इन सब स्थितियों से बचना होगा। जीवन में पूर्णता लाने का यही एकमात्र विकल्प है।

पांच देव और पांच ही प्राण सृष्टि पंचभूत है और जीवन भी। पृथ्वी, जल, वायु, तेज व आकाश से इसकी उत्पत्ति होती है। देव भी पांच हैं, इसलिए उन्हें पंचदेव कहा गया है। पंचांग की रचना भी पांच तत्वों तिथि, वार, नक्षत्र, योग व करण से हुई है। प्राण भी पांच हैं और ज्ञानेंद्रियांभी। पंचांगुलीसाधना, पंच प्रयाग, पंच बदरी,पंच केदार, पंचगव्य, पंचामृत, पंचमेवा,पंच फल, पंच परमेश्वर, पंचक, पंचवर्णीबल सभी पांच के अंक से प्रभावित हैं। &द्यह्ल;क्चक्त्र&द्दह्ल;

यह हैं प्रभावी कारक

सिंह राशि, बृहस्पति ग्रह, मृगशिरानक्षत्र, अग्नि तत्व, शोभन योग और मां दुर्गा का पांचवां अवतार रोहिणी जीवन को विशेष रूप से प्रभावित करेंगे

गागर में सागर है नवरात्र

हमारा देश में आध्यात्मिक ऊर्जा कण-कण में समाविष्ट है। यही कारण है कि जहां रोम, ग्रीक, मिस्नऔर वेवीलोनआदि जैसी प्राचीन सभ्यताएं और संस्कृतियां काल के प्रवाह में विलुप्त होती चली गई, वहीं भारत की संस्कृति अक्षुण्ण रही।

जगजननीमाता पार्वती तो तपोव्रत और एकनिष्ठव्रतकी मूर्तिमान विग्रह ही है। उनके तपोव्रत का मानस में बडा ही सुंदर वर्णन है-रिषिन्ह गौरी देखी तह कैसी। मूरतिमंततपस्या जैसी।। बोले मुनि सुनुसैल कुमारी। करहु कवन कारण तपुभारी।। मां जगजननीके नवरात्रवर्ष में दो बार आते हैं। यह नवरात्रऋद्धि-सिद्धि लाते हैं। मन शुद्ध हो, विधिवत पूजन हो तो मां भगवती की कृपा अवश्य होती है और मां हर मनोकामना पूर्ण करती है। वेद-पुराण उपनिषद, रामायण, महाभारत, भागवत गीता की तुलना में अगर नवरात्रको सामने रखा जाए तो नवरात्रमें दुर्गा पूजन के समक्ष कोई ग्रंथ शक्ति नहीं जो आपकी मनोकामना पूर्ण करती हो। भारतीय संस्कृति में शक्ति का स्वरूप दिव्य एवं व्यापक है। शैलपुत्री,ब्रंाचारिणी,चंद्रघंटा,कूष्मांडा,स्कंदमाता,कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरीएवं सिद्धदात्रीनामों से प्रसिद्ध नौ देवियों का केंद्र बिंदु मां जगजननीही है। दुर्गा की मूर्ति में हर काल में कुछ बदलाव आया है। कुषाणकाल में न तो दुर्गा की रूप ऐसा था, न ही उस समय उन्हें देवी के रूप में माना जाता था। उस समय इस पत्थर की मूर्ति के दो या चार हाथ होते थे और वाहन शेर भी न था। पांचवीं शताब्दी में दुर्गा की मूर्ति के चार हाथ थे और उसे भैंस से लडते दिखाया गया है। उसके हाथ में तलवार, भाला और ढाल थे। छठी से 12वींशताब्दी तक देवी के रूप का पूरा विकास हुआ। इस समय देवी के वाहन के रूप में सिंह प्रकट हुआ। भाले का स्थान त्रिशूल ने ले लिया। हाथों की संख्या भी 8-10-12से लेकर कुछ जगह 16तक पहुंची। जैसे-जैसे देवी की मूर्ति विकसित होती गई उनका प्रभाव भी बढता गया। मध्ययुग में देवी पूजा की लहर तेजी से फैली। इस लहर का इतना हल्ला हो गया। मां दुर्गा का मायके आना हो गया। इस नवरात्रमें मां अपने ससुराल शिव लोक से धरती लोक में मायके आती है। साधकों को मनचाहा फल देती हैं। प्रतिपदा से नवरात्रप्रारंभ होता है। अमावस्या युक्त प्रतिपदा ठीक नहीं मानी जाती। नौ रात्रि तक व्रत करने से यह नवरात्रपूर्ण होता है। तिथि ह्रास-वृद्धि से इसमें न्यूनाधिकतानहीं होती। प्रारंभ करते समय यदि चित्राऔर वैधृतियोग हो तो उनकी संपतिके बाद व्रत प्रारंभ करना चाहिए। परंतु देवी का आवाह्न,स्थापना और विसर्जन ये तीनों प्रात:काल में होने चाहिए। अतचित्रा,वैधृतिअधिक समय तक हो तो उसी दिन अभिजित्तमुहूर्त में आरंभ करना चाहिए। नवरात्रगागर में सागर की भांति बहुत व्यापक भावों को अपने में संजोये हुए है। नवरात्रपुण्यार्जक,पापनाशक दैहिक और आमुन्मिकउन्नति में सहायक, स्वास्थ्यवर्धकविभिन्न प्रकार के सकाम-निष्काम भावों का फल प्रदान करती है। अंत में देवनको धन-धाम सम, दैत्यनलियोछिनाय।दे काढिसुरधाम ते,वसेशिवपुरी जाय।