Saturday, May 23, 2009

कर्णवेध

हमारे मनीषियों ने सभी संस्कारों को वैज्ञानिक कसौटी पर कसने के बाद ही प्रारम्भ किया है। कर्णवेध संस्कार का आधार बिल्कुल वैज्ञानिक है। बालक की शारीरिक व्याधि से रक्षा ही इस संस्कार का मूल उद्देश्य है। प्रकृति प्रदत्त इस शरीर के सारे अंग महत्वपूर्ण हैं। कान हमारे श्रवण द्वार हैं। कर्ण वेधन से व्याधियां दूर होती हैं तथा श्रवण शक्ति भी बढ़ती है। इसके साथ ही कानों में आभूषण हमारे सौन्दर्य बोध का परिचायक भी है।

यज्ञोपवीत के पूर्व इस संस्कार को करने का विधान है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार शुक्ल पक्ष के शुभ मुहूर्त में इस संस्कार का सम्पादन श्रेयस्कर है।

Friday, May 1, 2009

अक्षय पुण्यों का त्योहार है अक्षय तृतीया

किसी भी शुभ कर्म के लिए काफी पवित्र माने जाने वाले अक्षय तृतीया पर्व पर हिन्दू श्रद्धालु नए निवेश या दान आदि कर्म को फलदायक मानते हैं। मान्यता है कि इसी दिन त्रेतायुग की शुरुआत हुई थी और महर्षि वेद व्यास ने भी इसी दिन महाभारत लिखनी शुरू की थी। इस बार सोमवार को अक्षय तृतीया का त्योहार है और लोगों में इसको लेकर अभी से ही काफी उत्सुकता है।

धर्म विशेषज्ञों के अनुसार मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन किए जाने वाले कामों और दान का फल अक्षय रहता है अर्थात कभी नहीं मिटता। इसी कारण लोग इस दिन विभिन्न वस्तुओं का दान करते हैं। हिन्दू त्योहारों और वृक्षों के बारे में कई पुस्तकें लिख चुके लखनऊ के राधाकृष्ण दुबे के अनुसार अक्षय तृतीया पर्व वैशाख मास में शुक्ल पक्ष के तीसरे दिन पडता है।

दुबे ने कहा कि यह भी मान्यता है कि अक्षय तृतीया के दिन विष्णु भगवान के अवतार परशुराम का जन्म हुआ था। उन्होंने कहा कि पूरा वैशाख माह ही भगवान विष्णु से संबंधित माना जाता है। भगवान विष्णु को परोपकार बहुत प्रिय है, इसलिए श्रद्धालु पूरे वैशाख मास विशेषतौर पर अक्षय तृतीया के दिन दान करते हैं, जो परोपकार ही है।

उन्होंने कहा कि आजकल अक्षय तृतीया पर सोना, चांदी और आभूषण खरीदने का चलन शुरू हो गया है। इस चलन का कोई शास्त्रीय आधार नहीं है। यह चलन त्योहारों के व्यवसायीकरण के अलावा और कुछ नहीं है।

दिल्ली के राजकीय विद्यालय में संस्कृत के अध्यापक और कर्मकांडी पंडित बालकृष्ण चतुर्वेदी के अनुसार अक्षय तृतीया पर्व चूंकि गर्मी के मौसम में पडता है इसलिए इस पर्व पर ऐसी चीजों के दान का महत्व अधिक है जो गर्मियों के अनुकूल हो। उन्होंने बताया कि इस पर्व पर लोग प्राय: मिट्टी के बने घडे, सुराही, मीठा शरबत, सत्तू,खरबूजा और हाथ के पंखे आदि दान करते हैं। उन्होंने कहा कि कुछ लोग इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भोजन करना पवित्र मानते हैं।

चतुर्वेदी ने कहा कि इस दिन दान करने से हजार गुना फल मिलने की मान्यता है। संभवत:इसी मान्यता के चलते अक्षय तृतीया के दिन विवाह कराना पवित्र माना गया है। हिन्दू धर्म में विवाह को भी कन्या दान की संज्ञा दी जाती है। यही वजह है कि राजस्थान में बहुत से लोग इसी दिन विवाह करना पसंद करते हैं।

गुण की गायत्री

गायत्री मंत्र न केवल वेदों का जन्मदाता है, बल्कि यह भारतीय सभ्यता और संस्कृति का सबसे पुराना मंत्र भी है। इसके माध्यम से हम ईश्वर से न केवल बुद्धि और विवेक, बल्कि सही राह दिखाने की प्रार्थना भी करते हैं। इस मंत्र के जाप से हम प्रकाश और जीवन देने वाले देवता सूर्य [सवितुर] की आराधना भी करते हैं।

मान्यता है कि गायत्री पांच सिरों वाली एक देवी हैं। जो लोग इस मंत्र का जाप करते हैं, यह देवी उन लोगों की पांचों इंद्रियों की रक्षा करती हैं। दरअसल, रक्षक होने के कारण ही गायत्री को सावित्री भी कहा जाता है। दुखों से मुक्ति गायत्री दो शब्दों गा और त्रायते के योग से बना है। गा का अर्थ है गाना अथवा प्रार्थना करना और त्रायतेका अर्थ है-दुखों, कष्टों और समस्याओं से मुक्ति। वास्तव में, जो व्यक्ति गायत्री मंत्र के अर्थ को भलीभांति जान लेता है और उसे अपने जीवन में उतार लेता है, वह निश्चय ही कठिन से कठिन बाधाओं को भी पार कर लेता है।

इसे गुरुमंत्र भी इसलिए कहते हैं, क्योंकि प्राचीनकाल में शिक्षा प्रदान करने से पहले गुरु ईश्वर की उपासना किया करते थे और इसके लिए वे गायत्री मंत्र का ही पाठ करते थे। ऋग्वेद और यजुर्वेद में गायत्री मंत्र की कई बार किसी न किसी रूप में चर्चा भी की गई है। आत्मबल का संचार ऋषियों-महात्माओं के अनुसार, गायत्री मंत्र के उच्चारण से हमारे मन पर एक सकारात्मक प्रभाव पडता है। यह मंत्र विपत्ति के समय न केवल हमें धैर्य और विवेक से काम लेने की सलाह देता है, बल्कि यह व्यक्ति में आत्मबल का संचार भी करता है। हम सभी अपने-अपने ढंग से ईश्वर की प्रार्थना करते हैं।

सच तो यह है कि ज्यादातर लोग चाहते हैं कि वे प्रभु का स्मरण ऐसी प्रार्थना के माध्यम से करें, जो सरल हो और उसे किसी भी स्थान पर प्रयोग में लाया जा सके। साधना और ध्यान के लिए जाप और अनुष्ठान का बहुत महत्व है। यदि हम किसी मंत्र का उच्चारण मन ही मन में कई बार करते हैं, तो वह जाप कहलाता है। इस क्रिया का हमारे मन और मस्तिष्क पर बहुत अधिक प्रभाव पडता है। साधक को जब भी समय मिलता है, वह जाप करना शुरू कर देता है। और ऐसा करने के कारण साधक का मन कभी खाली नहीं रह पाता। ऐसी स्थिति में मन में कभी बुरे विचार भी नहीं आ पाते हैं। मंत्र का अर्थ किसी भी व्यक्ति का आचार-व्यवहार उसके विचारों का ही प्रतिबिंब होता है। जाप से न केवल हमें बुराई से बचने में सहयोग मिलता है, बल्कि हम परोपकार भी करने लगते हैं। और यह तभी संभव हो पाता है, जब अर्थ समझकर ही जाप किया जाए। ओम ईश्वर अर्थात ब्रह्मा का मुख्य नाम है।

सृष्टि के प्रत्येक प्राणी में जीवन ईश्वर ने दिया है। भूर का अर्थ ब्रह्मांड का स्त्रोत, यानी ईश्वर को ही कहा गया है। भुव: का अर्थ पृथ्वी और स्वाहा स्वर्ग को कहा जाता है। सवितुर, यानी सविता- सूर्य की रोशनी को कहा जाता है। वरेण्यम का अर्थ है सर्वशक्तिमान और भर्गो कहते हैं कांति या तेज को। इस पंक्ति में सूर्य [भास्कर-उगते हुए सूर्य और प्रभात-डूबते हुए सूर्य] की कांति के बारे में बताया जा रहा है।

देवस्य का मतलब है देवता। धीमहि का अर्थ हुआ-हम चिंतन करते हैं। धियो, ज्ञान और बुद्धि को कहते हैं और यो मतलब कौन होता है। नहा का अर्थ हम लोग और प्रचोदयात का अर्थ है-जागृत करना। माना जाता है कि ईश्वर अपनी शक्ति के माध्यम से न केवल जीवों के कष्ट को दूर करते हैं, बल्कि पूरे ब्रह्मांड को संचालित करते हैं। इसलिए भूर, भुव:और स्व: शब्दों के माध्यम से हम परमेश्वर की स्तुति करते हैं। वरेण्यम अर्थात् हम ईश्वर की महानता को स्वीकार करते हैं। भर्गो देवस्यधीमहिका उच्चारण कर हम सर्वशक्तिमान ईश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वे हमारी अज्ञानता और दोषों को दूर करें।

धियो यो न प्रचोदयात्से हम परमेश्वर से प्रार्थना करते हैं कि वे हमारी बुद्धि और मन को श्रेष्ठ और उत्तम से उत्तम कर्मो में लगाएं। घृणा और ईष्र्या का त्याग ऋषियों और महात्माओं के अनुसार, यदि हमारे मन में दूसरों के प्रति घृणा या ईष्र्या का भाव रहेगा, तो कभी भी हम पर मंत्र जाप का सकारात्मक प्रभाव नहीं पडेगा। इसलिए हमें अपने मन से शत्रुता, ईष्र्या आदि का भाव निकाल देना चाहिए।

सच तो यह है कि यदि हम सच्चे और शुद्ध मन से गायत्री मंत्र का जाप करते हैं, तो न केवल सुख, बल्कि दुख में भी प्रसन्नचित्त रहेंगे। यह सच है कि जीवन में कई प्रकार की विपदाएं आती हैं, लेकिन यदि ऐसी स्थिति में हम धैर्य खो देंगे, तो कभी भी हमारे विचार दृढ नहीं हो पाएंगे। इसलिए जहां तक संभव हो सके, हमें किसी भी परिस्थिति में दूसरे व्यक्ति को मानसिक पीडा नहीं देनी चाहिए। इसलिए जहां तक संभव हो सके, हम दूसरों के दुखों को दूर करने का प्रयास करें।

और यदि हम ऐसा कर पाते हैं, तो वास्तव में यही गायत्री मंत्र का सौंदर्य है। गायत्री मंत्र वह प्रार्थना है, जिससे हमारे विचारों को सही तरह से और सही दिशा की ओर मार्गदर्शन मिलता है। यह मंत्र किसी शारीरिक पीडा को ठीक जरूर नहीं कर पाता है, बल्कि हमारी बुद्धि को अच्छे मार्ग की ओर तो ले ही जाता है।

स्वामी विवेकानंद के अनुसार, गायत्री मंत्र ध्यान का एक महत्वपूर्ण साधन है। लोकमान्य तिलक के शब्दों में यदि हम कुमार्ग त्याग कर सन्मार्ग का अनुसरण करना चाहते हैं, तो हमें प्रति दिन गायत्री मंत्र का जाप करना ही चाहिए। दरअसल, यह मंत्र हमारे लिए एक धरोहर के समान है, जिसका दैनिक जीवन में काफी महत्व है।