Saturday, October 17, 2009

धनतेरस की पूजा से विशेष लाभ

धनतेरस के दिन भगवान कुबेर और लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है। इस पूजा से भगवती लक्ष्मी प्रसन्न होकर आर्थिक संपन्नता और ऐश्वर्य प्रदान करती हैं। भगवान धनवंतरी का जन्मोत्सव होने के कारण इस दिन का विशेष महत्व है। आयुर्वेद के जनक भगवान धनवंतरी की पूजा-अर्चना आरोग्य प्रदान करती है। ज्योतिषाचार्य अशोक उपाध्याय पाराशर के अनुसार इस दिन संचित की गई जडी-बूटियां अमृत के समान जीवन का कायाकल्प करती हैं। धनदा त्रयोदशी जिसे धनतेरस भी कहते हैं का पर्व भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन सायंकाल में दीप दान किया जाता है तथा धनाधिपति भगवान कुबेर एवं गौरी-गणेश की पूजा श्रद्धा भाव से की जाती है। इस दिन अन्नपूर्ण स्तोत्र एवं कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने का विधान भी है। सायंकालीन दीप दान अपमृत्यु [अकाल मृत्यु] के निर्वाणार्थ किया जाता है। इस दीप दान से पूर्वज खुश होते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। जैसा कि शास्त्र विदित है:- मृत्युनापाश दण्डाभ्याम् कालेन श्यामयासह, ˜योदश्याम् दीपदानात् सूर्यज: प्रीयतांमम्।। अर्थात् यमपाश से मुक्ति पितर प्रसन्नता, विपरीत भाग्य से रक्षा एवं अकाल मृत्यु से बचने हेतु धनतेरस एवं यम द्वितीया को दीप दान अवश्य करना चाहिए। इस दिन स्थित लगन में बहुमूल्य रत्न एवं धातु, जवाहरात खरीदने का विशेष महत्व है। सोना-चांदी की खरीद से घर में समृद्धि बनी रहती है तथा देवी लक्ष्मी अति प्रसन्न होती हैं। बर्तन खरीदने की परंपरा भी रही है, लेकिन लौह पात्र या स्टेनलेस स्टील आदि के बर्तन खरीदने का कोई शास्त्र सम्मत प्रमाण नहीं मिलता। धनतेरस का महत्व इस दिन आयुर्वेद के जनक भगवान धनवंतरी की शुभ जयंती के कारण भी महत्व रखता है। करोडों दोषों एवं नवग्रह दोष से मुक्ति प्रदान करने वाला देवाधिदेव महादेव की प्रसन्नता हेतु प्रदोष व्रत भी इसी दिन रखा जाता है। लक्ष्मी की कृपा के लिए अष्टदल कमल बनाकर कुबेर, लक्ष्मी एवं गणेश जी की स्थापना कर उपासना की जाती है। इस अनुष्ठान में पांच घी के दीपक जलाकर तथा कमल, गुलाब आदि पुष्पों से उत्तर दिशा की ओर मुख करके पूजन करना लाभप्रद होता है। इसके अलावा ओम् श्रीं श्रीयै नम: का जाप करना चाहिए। इस दिन अपने इष्टदेव की पूजा एवं मंत्रजाप विशेष फलदायी होता है।

धनतेरस की पूजा से विशेष लाभ

धनतेरस के दिन भगवान कुबेर और लक्ष्मी की पूजा का विशेष महत्व है। इस पूजा से भगवती लक्ष्मी प्रसन्न होकर आर्थिक संपन्नता और ऐश्वर्य प्रदान करती हैं। भगवान धनवंतरी का जन्मोत्सव होने के कारण इस दिन का विशेष महत्व है। आयुर्वेद के जनक भगवान धनवंतरी की पूजा-अर्चना आरोग्य प्रदान करती है। ज्योतिषाचार्य अशोक उपाध्याय पाराशर के अनुसार इस दिन संचित की गई जडी-बूटियां अमृत के समान जीवन का कायाकल्प करती हैं। धनदा त्रयोदशी जिसे धनतेरस भी कहते हैं का पर्व भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन सायंकाल में दीप दान किया जाता है तथा धनाधिपति भगवान कुबेर एवं गौरी-गणेश की पूजा श्रद्धा भाव से की जाती है। इस दिन अन्नपूर्ण स्तोत्र एवं कनकधारा स्तोत्र का पाठ करने का विधान भी है। सायंकालीन दीप दान अपमृत्यु [अकाल मृत्यु] के निर्वाणार्थ किया जाता है। इस दीप दान से पूर्वज खुश होते हैं और अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं। जैसा कि शास्त्र विदित है:- मृत्युनापाश दण्डाभ्याम् कालेन श्यामयासह, ˜योदश्याम् दीपदानात् सूर्यज: प्रीयतांमम्।। अर्थात् यमपाश से मुक्ति पितर प्रसन्नता, विपरीत भाग्य से रक्षा एवं अकाल मृत्यु से बचने हेतु धनतेरस एवं यम द्वितीया को दीप दान अवश्य करना चाहिए। इस दिन स्थित लगन में बहुमूल्य रत्न एवं धातु, जवाहरात खरीदने का विशेष महत्व है। सोना-चांदी की खरीद से घर में समृद्धि बनी रहती है तथा देवी लक्ष्मी अति प्रसन्न होती हैं। बर्तन खरीदने की परंपरा भी रही है, लेकिन लौह पात्र या स्टेनलेस स्टील आदि के बर्तन खरीदने का कोई शास्त्र सम्मत प्रमाण नहीं मिलता। धनतेरस का महत्व इस दिन आयुर्वेद के जनक भगवान धनवंतरी की शुभ जयंती के कारण भी महत्व रखता है। करोडों दोषों एवं नवग्रह दोष से मुक्ति प्रदान करने वाला देवाधिदेव महादेव की प्रसन्नता हेतु प्रदोष व्रत भी इसी दिन रखा जाता है। लक्ष्मी की कृपा के लिए अष्टदल कमल बनाकर कुबेर, लक्ष्मी एवं गणेश जी की स्थापना कर उपासना की जाती है। इस अनुष्ठान में पांच घी के दीपक जलाकर तथा कमल, गुलाब आदि पुष्पों से उत्तर दिशा की ओर मुख करके पूजन करना लाभप्रद होता है। इसके अलावा ओम् श्रीं श्रीयै नम: का जाप करना चाहिए। इस दिन अपने इष्टदेव की पूजा एवं मंत्रजाप विशेष फलदायी होता है।

श्रीराम भक्ति के द्वितीय आचार्य हैं हनुमान लला

भगवान श्रीराम के चरणों में जितना अनुराग श्री हनुमान का है उतना अन्य किसी का नहीं। एकादश रुद्र के अवतार के रूप में स्वयं भगवान शिव ने श्रीराम के चरणों की सेवा की अपनी कामना को पूरा करने के लिए हनुमान के रूप में अवतार लिया। वे सदैव श्रीराम के चरणों में कैंकर्य करते हैं। वहां से विरत होने के बाद समाधिस्थ हनुमान मानसिक रूप से श्रीराम के पद पंकज की सेवा करते हैं। गोस्वामी तुलसी दास ने श्री हनुमान की श्रीराम भक्ति को इस प्रकार सम्मानित किया है। हनुमान सम नहि बड भागी, नहि कोऊ रामचरन अनुरागी। श्रीराम भक्ति की प्रथम आचार्य स्वयं माता जानकी है, उन्होंने श्री हनुमान की रामभक्ति से प्रसन्न होकर उन्हें आठों प्रकार की सिद्धि व नौ निधियों के साथ-साथ श्रीराम महामंत्र प्रदान किया। इस तरह श्री हनुमान रामभक्ति के द्वितीय आचार्य हुए। उन्हें श्रीराम भक्ति का प्रथम प्रचारक होने का भी गौरव प्राप्त हैं। मानस में गोस्वामी जी ने भगवान शिव के हनुमान अवतार पर इस तरह प्रकाश डाला है। वे लिखते हैं पुरखा ते सेवक भये, हर ते भये हनुमान। अखिल भारतीय षड्दर्शन अखाड परिषद अध्यक्ष महंत ज्ञानदास कहते हैं किभगवान श्रीराम ने धरा धाम पर अपनी समस्त शक्तियों सहित अवतार लिया। स्वयं ब्रह्मा जामवन्त के रूप में अवतरित हुए जबकि हनुमान जी स्वयं शिव के अवतार हैं। उन्होंने कहा कि श्रीराम हमेशा शिव की पूजा करते रहते थे इससे शिव के मन श्रीराम चरणों के पूजन की जो इच्छा शेष थी, उसे उन्होंने श्री हनुमान के रूप में पूरा किया। इस प्रकार श्री हनुमान द्वारा प्रचारित श्रीराम भक्ति से आज संपूर्ण विश्व आलोकित हैं। श्रीराम महामंत्र हनुमान जी से श्री ब्रह्मा, वशिष्ठ, पाराशर, व्यास, शुकदेव, बोधायनाचार्य आदि से होकर रामानंदाचार्य तक पहुंचा। उन्होंने कबीर, रैदास, दादू आदि अपने द्वादश शिष्यों के जरिये श्रीराम भक्ति को जाति-पांति के बंधनों से मुक्त कर आम जन तक पहुंचाया। अखिल भारतीय त्रय अनी अखाडों के प्रधानमंत्री माधव दास कहते हैं कि हनुमानगढी में विराजमान हनुमानजी स्वयं श्रीराम द्वारा स्थापित हैं। चौकी हनुमत बीर के रूप में श्रीराम द्वारा स्थापित यह पीठ भक्तों के सदैव श्री हनुमान का साक्षात वास होने का अनुभव कराती है। जब तक धरा धाम पर रामनाम व रामायण रहेगी तब तक श्री हनुमान हनुमानगढी में साक्षात वास कर भक्तों के मनोरथों को पूरा करेंगे।

Monday, October 12, 2009

राधाकुंड पुण्य प्रदाता

ब्रजमंडलमें भगवान श्रीकृष्ण और भगवती राधा की लीलाओं के अनेक स्थान हैं। उनमें राधा-कुंड की बडी चर्चा और महिमा सुनने को मिलती है। वैसे, यहां साल भर तीर्थयात्री आते रहते हैं, लेकिन कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी की अ‌र्द्धरात्रि में हजारों लोग बडी श्रद्धा से उसमें स्नान करते हैं। मान्यता है कि कार्तिक-कृष्ण-अष्टमी की मध्यरात्रि में ही राधाकुंडबना था। राधा का परिहास कहते हैं कि द्वापर युग में कंस ने वृष [सांड] रूपधारीअरिष्टासुरको श्रीकृष्ण का वध करने के लिए गोकुल भेजा था। भला भगवान को कौन मार सकता है, उल्टे श्रीकृष्ण ने ही अरिष्टासुरको मार डाला। अरिष्टासुरका वध करने के बाद जब योगेश्वर श्रीकृष्ण रात्रि में रासलीला के लिए निकुंज पहुंचे, तब गोपियों से घिरीं राधाजीने उनसे परिहास किया, आज तुमने एक सांड [गोवंश] की हत्या की है, इसलिए तुम्हें गोहत्या का पाप लगा है। पृथ्वी के सभी तीर्थो में स्नान करने के बाद ही तुम दोष-मुक्त हो सकोगे। तुम्हारे शुद्ध होने पर ही हम लोग तुम्हारे साथ रासलीला में भाग लेंगे। इस पर श्रीकृष्ण बोले, मैं ब्रज छोडकर अन्यत्र कहीं नहीं जाऊंगा। मैं सभी तीर्थो को ब्रज में बुला लेता हूं। ऐसा कहकर श्रीकृष्ण ने अपने पैर की एडी की चोट से एक विशाल कुंड का निर्माण किया और उसमें पृथ्वी के सब तीर्थो का आह्वान किया।

कहते हैं कि सभी तीर्थ जल रूप में उस कुंड में प्रवेश कर गए। तीर्थो के निर्मल जल से परिपूर्ण वह कुंड श्यामकुंड के नाम से प्रसिद्ध हो गया। श्रीकृष्ण उस कुंड में स्नान करके राधारानीके सामने इठलाते हुए पहुंचे, तो वे तुनककर सखियों के साथ पास में ही अपने हाथ के कंगन की सहायता से एक अन्य कुंड बनाने में जुट गई।

राधारानीका कुंड तैयार हो गया, लेकिन उसमें जल न था। सरोवर में पानी भरने के लिए उन्होंने सखियों के साथ ब्रज के अन्य जलाशयों से पानी लाने का विचार किया। इधर श्यामकुंडमें उपस्थित तीर्थो के हृदय में यह भावना उठी कि उन्हें राधाजीके बनाए कुंड में भी स्थान मिल जाए, तभी ब्रज में उनका आगमन सार्थक होगा। भगवान श्रीकृष्ण तीर्थो की मनोकामना जान गए। उन्होंने तीर्थो को इसकी अनुमति मांगने के लिए राधाजीसे स्वयं प्रार्थना करने को कहा। तीर्थो की आराधना से प्रसन्न होकर भगवती राधा ने उन्हें अपने कुंड में आने की अनुमति दे दी। करुणामयी देवी की स्वीकृति पाते ही आनन-फानन में सभी तीर्थ श्यामकुंडकी सीमा तोडकर राधाकुंड में प्रवेश पा गए। श्यामकुंडकी तरह राधाकुंडभी सब तीर्थो के जल से भर गया। कालीखेतऔर गौरीखेत द्वापरयुगमें बने राधाकुंडऔर श्यामकुंडश्रीकृष्ण के द्वारकाजाने के बाद लुप्त हो गए। उनके प्रपौत्र [परपोते] महाराज वज्रनाभने शांडिल्य ऋषि के मार्गदर्शन में इन कुंडों का उद्धार किया, लेकिन कालान्तर में ये दोनों कुंड पुन:लुप्त हो गए। आज से 493वर्ष पूर्व विक्रम संवत 1573में जब श्रीचैतन्यमहाप्रभु ब्रजमंडलकी यात्रा करते हुए यहां पधारे, तब उन्होंने स्थानीय लोगों से इन दोनों कुंडों के बारे में पूछा।

ग्रामीणों ने उन्हें बताया कि यहां कालीखेतएवगौरीखेतहैं, जहां कुछ जल है। कहा जाता है कि महाप्रभु ने अपनी दिव्यदृष्टि से देखा, तो पहचान गए कि कालीखेतश्यामकुंडऔर गौरीखेतराधाकुंडहैं। चैतन्य महाप्रभु के निज धाम जाने के बाद जगन्नाथपुरीसे श्रीरघुनाथदासगोस्वामी राधाकुंडआकर भजन करने लगे। एक समय मुगल सम्राट अकबर अपनी सेना के साथ इस रास्ते से कहीं जा रहे थे। सैनिक और जानवर बहुत प्यासे थे। बादशाह ने गोस्वामी जी से पानी के विषय में पूछा, तो उन्होंने कालीखेतऔर गौरीखेतकी ओर इशारा किया। अकबर ने वहां देखा, तो उसे लगा कि इतने छोटे सरोवरों से उसकी सेना की प्यास नहीं बुझ सकेगी। यह देखकर आश्चर्यचकित हो गया कि संपूर्ण सेना और जानवरों के पानी पी लेने के बाद भी इसमें जल का स्तर जरा भी नहीं गिरा। आहा वोही राधाकुंडके निर्माण के समय राधारानीके साथ जुटी गोपियों ने उत्साहित होकर मुख से आहा वोहीशब्द का उच्चारण किया, जो बाद में अपभ्रंशहोकर अहोई बोला जाने लगा। राधाकुंडका निर्माण कार्तिक-कृष्ण-अष्टमी की अ‌र्द्धरात्रि में होने के कारण यह तिथि अहोई अष्टमी कहलाई। इसका दूसरा नाम बहुला अष्टमी भी है। राजसूय यह कुंड भगवान कृष्ण को भी अतिप्रियहै।

Saturday, October 3, 2009

कौन जाग रहा है?

मानव सदा से ही भगवती लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहा है। माना जाता है कि लक्ष्मी जी धन-संपत्ति-ऐश्वर्य की अधिष्ठात्री हैं। सांसारिक जीवन के सभी कामों में हमें उनकी अनुकंपा की आवश्यकता पडती है, इसीलिए प्रत्येक गृहस्थ अपने घर में उनके आगमन की कामना रखता है।

हिंदू धर्मग्रंथों के अनुसार, शरद ऋतु में आश्विन माह की पूर्णिमा की रात में विष्णुप्रियालक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और यह देखती हैं कि कौन उनका स्वागत करने के लिए जाग रहा है। जिस घर में उनके स्वागत के लिए रात्रि-जागरण, स्मरण, पूजन-संकीर्तन हो रहा होता है, वहां वे प्रसन्न होकर सुख-समृद्धि का वरदान देकर वैकुंठ वापस लौट जाती हैं।

भगवती लक्ष्मी के द्वारा कौन जाग रहा है? यह पूछे जाने के कारण शरद पूर्णिमा को कोजागरी नाम मिल गया और इस दिन लक्ष्मी के निमित्त व्रत-पूजन करने और रात भर जागने का विधान बन गया। इस वर्ष 3अक्टूबर को शरद पूर्णिमा का व्रत रखा जाएगा और रात में कोजागरीपर्व मनाया जाएगा। लक्ष्मी का आह्वान भक्तगण प्रात:काल स्नान करने के बाद उत्तर दिशा की ओर मुख करके ऐरावत हाथी पर आरूढ भगवती लक्ष्मी का देवराज इंद्र सहित आह्वान और पूजन करें। दिन भर उपवास रखें और सूर्यास्त हो जाने के बाद रात्रि में लक्ष्मी की मूर्ति या चित्र के सामने देशी घी का अखंड दीपक जलाएं, जो रात भर ठीक से जलता रहे। यदि साम‌र्थ्य हो, तो देवालयों [मंदिरों], बाग-बगीचों, तुलसी, आंवला, बेल और पीपल के पेडों के नीचे भी दीपक रखें। स्वयं सफेद वस्त्र पहनें और देवताओं की मूर्तियों को श्वेत वस्त्र और मोती के आभूषण धारण करवाएं। घर की अच्छी तरह सफाई करें, क्योंकि देवी लक्ष्मी को स्वच्छता पसंद है।

भगवती को शोर-शराबे से भी चिढ है, इसलिए वे कलह-क्लेश वाले स्थान पर भी नहीं ठहरती हैं। जिस घर में रोज लडाई-झगडा होता हो, वहां लक्ष्मीजीकभी प्रवेश नहीं करती हैं। सर्वसुखप्रदान करने वाली देवी को शांति इतनी प्रिय है कि इनके पूजन में घंटा बजाना तक मना है। जिस परिवार में स्त्रियों पर अत्याचार होता है, लक्ष्मीजीउससे विमुख हो जाती हैं। इसलिए आप जान लें कि यदि आप लक्ष्मीजीका आह्वान अपने घर में करना चाहते हैं, तो आपके यहां स्वच्छता, शांति और परस्पर सौहार्द होना बहुत जरूरी है। लक्ष्मी-मंत्र का जाप यदि संभव हो, तो शरद पूर्णिमा की रात्रि में जागकर लक्ष्मी-मंत्र का अधिकाधिक जप या श्रीसूक्त का पाठ करें। कमलगट्टेकी माला पर लक्ष्मी-मंत्र जपने से शीघ्र फल मिलता है। तंत्र ग्रंथों में उनके कईमंत्रोंका उल्लेख मिलता है, लेकिन कोजागरी में इस मंत्र का प्रयोग प्रभावकारी सिद्ध हुआ है-

ॐश्रींह्रींक्लींश्रींलक्ष्मीरागच्छागच्छमम मंदिरेतिष्ठतिष्ठस्वाहा। माना जाता है कि शरद पूर्णिमा की रात्रि से प्रारंभ करके इस मंत्र का नित्य जाप करते रहने से आर्थिक समस्या दूर होती है और वित्तीय स्थिति में सुधार आता है। खीर का भोग शरद पूर्णिमा की रात में माता को गाय के दूध से बनी खीर का भोग लगाया जाता है। खीर का भोग कोजागरीकी लक्ष्मी-पूजा का अनिवार्य अंग है। मान्यता है कि शरद पूर्णिमा की चांदनी में अमृत का अंश होता है, इसलिए खीर को रात भर चांदनी में रखकर सुबह उसे प्रसाद-स्वरूप ग्रहण किया जाता है। आयुर्वेद के ग्रंथों में भी इसकी चांदनी के औषधीय महत्व का वर्णन मिलता है। अनेक असाध्य रोगों की दवाएं इस खीर के साथ खिलाई जाती हैं। अमृतकाल शरद् ऋतु की पूर्णिमा में अमृतकाल की अवधि में ही चांदनी में अमृत समाविष्ट होता है। हमारी गणना के अनुसार, इस वर्ष अमृतकाल शनिवार की रात्रि में 11.31बजे से शुरू होकर रात भर रहेगा। कोजागरीकी लक्ष्मी-पूजा का उद्देश्य स्वास्थ्य और समृद्धि की प्राप्ति है। इसकी जितनी प्रासंगिकता प्राचीनकाल में थी, उतनी ही आज के आधुनिक युग में भी है।