Monday, January 9, 2012

सवा लाख से एक लड़ाऊं

गुरु गोविंद सिंह जी से प्रेरणा लेकर कोई भी उच्चतम जीवन उद्देश्यों को प्राप्त कर सकता है। उनका जन्मदिन प्रकाश पर्व [नानकशाही कैलेंडर के अनुसार 31दिसंबर] के रूप में मनाया जाता है.. गुरु गोविंद सिंह जी का जीवन बहुपक्षीय एवं बहुआयामी था। उनसे प्रेरित होकर मनुष्य न सिर्फ जीवन के उच्चतम उद्देश्यों को प्राप्त कर सकता है, बल्कि जीवन की आम समस्याओं से निपटने के लिए भी मार्गदर्शन हासिल कर सकता है। संत-सिपाही :गुरु जी संत भी थे और सिपाही भी। उन्होंने हमेशा गरीबों-पीडितों की रक्षा और अत्याचार के विरोध के लिए ही तलवार उठाई। औरंगजेबके सिपहसालार सैदखां से युद्ध करते समय जब गुरु जी ने उस पर वार किया, तो वह घायल होकर गिर पडा। गुरु जी ने अपनी ढाल से उस पर छाया की और मरहम-पट्टी का प्रबंध भी किया। कहा जाता है कि गुरु जी के तीरों में सोना मढा होता था, ताकि मरने वाले को अंतिम संस्कार का सामान मिल सके और यदि वह घायल होता है, तो उसे इलाज का खर्च मिल सके। गुरु जी का यह उच्च आचरण मनुष्य को सिखाता है कि परिस्थितियां कितनी भी विपरीत हों, मानवीय मूल्यों को कभी नहीं भूलना चाहिए। समता के सरपरस्त :गुरु गोविंद सिंह जी का सारा संघर्ष मानवता की रक्षा के लिए था। उन्होंने दबे-कुचले लोगों को एकत्र कर खालसा का सृजन कर ऐसी शक्तिशाली सेना तैयार की, जिसने अपने समय की सबसे बडी सैनिक शक्तियों को परास्त किया। चिडियन तेमैं बाज तुडाऊं और सवा लाख से एक लडाऊं का घोष करके गुरु जी ने जनता की उस सोई शक्ति को जगा दिया, जो अपने सम्मान और अधिकारों की रक्षा के लिए बडी से बडी ताकत से भिडने में समर्थ है। यही नहीं, गुरु जी ने इनहिंते राजेउपजाऊं कहकर शक्तिहीन जनता को राजनीतिक शक्ति हासिल करने लायक भी बनाया। उनका संदेश है कि सभी मनुष्य समान हैं और व्यवस्थाओं में उनकी भागीदारी बराबर है। आध्यात्मिक नेतृत्व :गुरु गोविंद सिंह जी ने मनुष्य को आदर्श आचरण धारण करने के लिए प्रतिबद्ध किया। गुरु जी द्वारा प्रदत्त पांच ककार उच्च एवं आदर्श जीवन के प्रतीक हैं। केश श्रेष्ठ चिंतन, कृपाण शक्ति, कछहरा सदाचार, कडा संयम और कंघा स्वच्छता एवं निर्मलता का प्रतीक है। कवि एवं भाषाविद :अकाल उसतति,जापु साहिब, जफरनामा जैसी कृतियों के रचयिता गुरु गोविंद सिंह जी कवियों एवं विद्वानों का बहुत आदर करते थे। उनके विद्या दरबार में 52कवियों समेत सर्वाधिक विद्वान थे जो निरंतर साहित्य-सृजन में लगे रहते थे। सर्ववंशबलिदानी :गुरु जी के परदादा पंचम पातशाहगुरु अर्जुन देव जी ने शहीदी देकर बलिदान परंपरा शुरू की। गुरु जी के पिता नवम गुरु श्री गुरु तेग बहादुर जी ने चांदनी चौक में शीश दिया। गुरु जी के चारों साहिबजादेभी मानवता की रक्षा हेतु कुर्बान हुए। गुरु गोविंद सिंह जी ने सिद्ध कर दिया कि सत्य और मानवता की रक्षा के लिए बलिदान करना पडे, तो पीछे नहीं हटना चाहिए।