Saturday, April 11, 2009

सबसे संपन्न मंदिर तिरु पति

तिरुपतिमंदिर में जब फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन भगवान वेंकटेश्वरके दर्शन के लिए पहुंचे, तो उन्होंने बारह करोड रुपये का दान दिया। यही वजह है कि यह भारत का सबसे अमीर मंदिर कहलाता है।

कहते हैं कि भगवान वेंकटेश्वरके चरणों में भक्तगण हीरे की थैली भी भेंट करते हैं। यहां सभी धर्मो के लोग बडी संख्या में पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां आप भगवान से जो कुछ मांगते हैं, वह मिल जाता है। सात पहाडों वाला मंदिर सात पहाडों से मिलकर बना है तिरुमाला पहाड और इस पर स्थित है तिरुपतिमंदिर। सातों पहाड को शेषाचलमया वेंकटाचलमभी कहते हैं। तिरुमाला पहाड की चट्टानें पूरे विश्व में दूसरी सबसे पुरानी चट्टानें हैं। तिरुपतिमंदिर में निवास करते हैं भगवान वेंकटेश्वर।

भगवान वेंकटेश्वरको विष्णु का अवतार भी माना जाता है। यह मंदिर समुद्र से 28सौ फीट की ऊंचाई पर स्थित है। तिरुपतिएक महत्वपूर्ण तीर्थस्थान है, जहां भक्त अपने भगवान की एक झलक पाने के लिए घंटों लाइन में खडे रहते हैं। यह मंदिर तिरुपतिबालाजीमंदिर भी कहलाता है। अद्भुत वास्तुकला यह मंदिर आंध्रप्रदेश के चित्तूरजिले में स्थित है। इसे तमिल राजा थोंडेईमानने बनाया था। बाद के समय में चोल और तेलुगू राजाओं ने इसे और विकसित किया। यही वजह है कि इस पर द्रविडियन[तमिल] कला की स्पष्ट छाप देखी जा सकती है।

वास्तव में, मंदिर की वास्तुकला अद्भुत है। विजयनगरके राजा कृष्णदेवराय ने इस मंदिर में सोना, हीरे-जवाहरात आदि का दान दिया था। उसी समय से भक्तगण इस मंदिर को खूब दान देते आ रहे हैं। इस मंदिर का गोपुरम आकर्षण का मुख्य केंद्र है। मंदिर के गर्भगृह के ऊपर स्थित है आनंद निलयम,जो पूरी तरह सोने के प्लेटों से बना है। मंदिर की बनावट मंदिर को तीन भागों में बांटा जा सकता है। बाहरी प्रांगण को ध्वजास्तंभकहते हैं। मंदिर स्थल पर विजयनगरके राजा कृष्णदेवराय और उनकी पत्नी की मूर्ति भी स्थापित है। इसके अलावा, अकबर के एक मंत्री टोडरमलकी मूर्ति भी लगी हुई है। मुख्य मंदिर में भगवान की मूर्ति रखी हुई है, जिसमें भगवान विष्णु और शिव दोनों का रूप समाया हुआ है। सेवा और उत्सव तिरुपतिमंदिर में प्रतिदिन भगवान वेंकटेश्वरकी पूजा होती है। दिन की शुरुआतसुबह तीन बजे सुप्रभातम, यानी भगवान को जगाने से होती है। सबसे अंत में एकांत सेवा, यानी भगवान को सुलाया जाता है। यह सेवा रात के एक बजे तक संपन्न होती है।

भगवान की प्रार्थना-स्तुति प्रतिदिन, साप्ताहिक और पक्षीय रूपों में आयोजित की जाती है, जिसे सेवा और उत्सव कहते हैं। देवता को दिया जाने वाला चढावा या दान हुंडी कहलाती है। हर वर्ष सितंबर महीने में यहां ब्रह्मोत्सवमनाया जाता है।

Saturday, April 4, 2009

कैसा पैसा?

किसी समय चार मित्र बहुत बडी मात्रा में धन-सोना, चांदी, हीरे, जवाहरात आदि की खोज करना चाहते थे। उन लोगों ने एक विवेकी व्यक्ति से खजाना पाने का उपाय पूछा।

उस व्यक्ति ने उन चारों मित्रों को खजाने की खोज में किसी खास पहाड पर जाने के लिए कहा। जैसे ही वे पहाड पर चढे, उन्हें एक गुफादिखाई दी, जिसमें ढेरों चांदी रखी हुई थी। एक मित्र ने फैसला किया कि वह चांदी लेकर घर चला जाएगा। शेष तीनों मित्र पहाड पर चढते गए। आगे उन्हें एक गुफादिखाई दी, जिसमें सोना था। एक मित्र ने कहा कि वह सोना लेकर वापिस जा रहा है। शेष दोनों मित्र आगे बढे, तो उन्हें एक और गुफादिखाई दी, जिसमें हीरे-जवाहरात रखे हुए थे। एक मित्र ने कहा कि वह इन्हें लेकर घर जा रहा है।

आखिरी मित्र और ऊपर चढता गया। वह मित्र जब ऊपर पहुंचा, तो उसने देखा कि वहां एक व्यक्ति बैठा हुआ था, जिसके सिर पर एक चक्र घूम रहा था। उसने ऊपर चढने वाले व्यक्ति से पूछा, तुम यहां इस पहाड पर क्यों आए हो? आगंतुक मित्र बोला, मैं एक बडे खजाने की खोज में यहां आया हूं। मेरे तीन मित्रों को जो कुछ रास्ते में मिला, लेकर चले गए हैं। मुझे विश्वास है कि यहां कहीं उससे भी अधिक बडा खजाना गडा हुआ है और मैं उसे पाना चाहता हूं।

जो तुम ढूंढ रहे हो, उसका पता मैं तुम्हें बता सकता हूं। थोडी देर के लिए मुझे इस चक्र से मुक्त कर दो ऊपर बैठे उस व्यक्ति ने कहा। आगंतुक व्यक्ति मान गया। मैं अब बहुत प्रसन्न हूं कि मैं इस भार से मुक्त हो गया। सच तो यह है कि मैं इसे दशकों से ढो रहा था। तुम्हारी तरह, मैं भी अपने मित्रों के साथ खजाने की खोज में यहां पहुंचा था। मुझे भी कुछ अधिक पाने की चाह थी। अंतत:मैं तुम्हारी तरह इस पर्वत की चोटी पर पहुंच गया। मुझे भी एक चक्रधर मिला था। जो मैंने तुम्हें कहा है, उसने भी मुझे वही कहा था। मैं भी तुम्हारी तरह उस मायाजाल में फंसगया था, जिससे अब मैं मुक्त हो चुका हूं।

अब तुम इस चक्र में फंसे रहो, जब तक और कोई लोभी व्यक्ति तुम्हें इससे मुक्त नहीं कराता। यह कह कर वह व्यक्ति चला गया। उस व्यक्ति का ऐसा हाल उसके लोभ के कारण हुआ। कहते हैं कि हर पाप का जन्म लोभ से भी होता है। शेख सादी कहते हैं कि लालची व्यक्ति पूरी दुनिया पाने पर भी भूखा रहता है, लेकिन संतोषी व्यक्ति एक रोटी से भी पेट भर लेता है। इंसान यदि लालच को ठुकरा दे, तो बादशाह से भी ऊंचा दर्जा हासिल कर सकता है। क्योंकि संतोष ही हमेशा इंसान का माथा ऊंचा रख सकता है।

धन जीवन-यात्रा के लिए महत्वपूर्ण साधन है। जीवन में हमें हर कदम पर धन की आवश्यकता पडती है। संभव है कि धन के अभाव में हमारा जीवन कष्टमयहो जाए। वेदों में कहा गया है- हम धन-ऐश्वर्य आदि के स्वामी बनें। लेकिन साथ ही यह भी कहा गया है कि हम धर्मपूर्वक,सच्चाई और ईमानदारी से ही धन कमाएं। जब लोभ बढता है, तो हमारी अतृप्त इच्छाएं भी बढने लगती हैं। इसी कारण दिन-रात हम यही सोच कर चिंतित होते रहते हैं कि कैसे अधिक से अधिक धन कमाया जाए! एलबर्ट आइंस्टीनका कहना था संसार में मौजूद किसी भी प्रकार का धन-ऐश्वर्य मानवता को आगे ले जाने में सहायक नहीं हो सकता। जो कुछ हमारे पास है, उसमें संतुष्ट रहना ही हमारी सबसे बडी संपत्ति है, क्योंकि सभी इच्छाओं को मन शांत नहीं कर सकता। इसका मतलब यह नहीं है कि हमें धन-सम्पदा कमाने में प्रयत्न नहीं करना चाहिए, क्योंकि धन-सम्पत्ति प्राप्त करने की अंधी दौड ही हमें विनाश की ओर ले जाती है। लालसापूर्णजीवन और अंधाधुंध सम्पत्ति प्राप्त करने की दौड त्यागने में ही भलाई है। हम पैसे से सुख-साधन खरीद सकते हैं, लेकिन सुख और शान्ति नहीं।

हमारे मनीषियोंने सच ही कहा है कि धन सम्पत्ति पाने की होड हमें गर्त में ले जाती है, लेकिन जो साधक लोभरहितसत्य की राह पर चलते हैं, वे बुद्धिमान माने जाते हैं।

सच तो यह है कि सच्चा सुख और आनंद की प्राप्ति केवल धन-सम्पत्ति पाने की होड में लगे रहने से नहीं हो सकती है। दरअसल, हमें उतनी ही मात्रा में धन-सम्पत्ति की कामना करनी चाहिए, जिससे कि हमारा चारित्रिक और आध्यात्मिक विकास संभव हो सके।

रामवाण एवं रामवाणी दोनों ही अचूक

अयोध्या में महाराजा दशरथ को नवरात्रि के अंतिम दिन पुत्र रत्न प्राप्त होने पर मनाए गए रामजन्मोत्सवका वाल्मीकीय रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत रामरचितमानस में अत्यधिक मनोरम वर्णन किया गया है। इस दिन मानो शक्ति पूजा का प्रसाद प्राप्त हुआ। वासंतीनवरात्रि की नौमीतिथि को शक्तिधर राम अवतरित हुए और अपने कृत्यों और सुयश से इस नवरात्रि को राम- नवरात्रि एवं नवमी को रामनवमी के रूप में प्रसिद्धि प्रदान की।

राम का रामत्वकथनी से अधिक करनी के माध्यम से व्यक्त हुआ। राम की पहचान एक बान यहां बान द्वि अर्थक है वाणी और वाण। उनका कथन ही उनका दृढसंकल्पहै। जिस पर वाण तान दिया, उसको दण्डित करके ही छोडा। उनकी शक्ति शरणागत की रक्षा और आतताईअत्याचारियोंके मान, मर्दन के लिए है।

राम में कथनी, करनी, गुण, स्वभाव, दृढता,कोमलता,क्रोध क्षमाशीलताआदि सभी अनुकरणीय है। राम मर्यादा, रक्षार्थसतत सृजनशील है। महर्षि वाल्मीकि के राम अवतार नहीं, देवर्षिनारद द्वारा अनुशंसित तीनों लोकों में आदर्श पुरुष है, जिनका वे गुण-गान करते

है। वे कल्पना नहीं परम ज्ञानी थे। नारदजीने कसौदीपर परखकर बताया है कि वे हाड मांस के पुतले के रूप में वास्तव में धरती माता के यशस्वी

पुत्र है। वास्तव में वे कीर्तनीयहै। तीनों लोको में मन की गति से भ्रमणशील नारद सभी प्राणियों के मुखर अभिमत को अभिव्यक्त करते हैं, उन्हें आदर्श पुरुष कहकर। वाल्मीकि जी ने उन्हें सशरीर धर्म कहा है।

यहां ध्यान देने योग्य है कि नारद जी के शाप से ही श्री हरि, विष्णु या श्रीमन्नारायणको मनुज रूप में अवतरित होकर उनके शाप से राक्षस

बने रावण को मारने आना पडा है। वे सतत सहज नर लीला कर रहे हैं, कोई भी संदेह नहीं कर पाया कि वे भगवान् हैं। नारद जी के शाप का मान रखने के लिए ही वे खग,मृग वृक्ष एवं लताओं से पूछते फिर रहे हैं कि आपने मृगनयनीसीता को देखा है, शिव पत्नी सती ने महर्षि अगस्त्य और शिवजी की पारस्परिक राम कथा सुनकर भी शिवजी से तर्क करना नहीं छोडा कि वे अज्ञ के समान जड पदार्थो से पत्नी का पता पूछ रहे हैं, वे सच्चिदानंद कैसे हो सकते हैं, उनका भ्रम दूर करने

के लिए शिवजी उन्हें परीक्षा लेने के लिए भेज देते हैं और वे सीता बनकर रामजी के सामने पडती हैं किंतु उनका भेद खुल गया। यहीं गीता की उक्ति चरितार्थ होती है। संशयात्माविनश्यति।

पति से परित्यक्त सती को पुन:पति की प्राप्ति के लिए नया शरीर धारण कर घोर तप करना पडता है। दक्ष शिव शरीर को वे दक्ष के ही यज्ञ कुंड में भस्म कर हिमालय पुत्री पार्वती बनती हैं। शक्ति भी ब्रह्मके निरादर का दंड भोगती है। सदेह शक्ति ने पार्वती के रूप में पति को प्रसन्न देख पूर्वजन्म की स्मृति बनी रहने से राम मूलक चौदह प्रश्न किए रामुकवन प्रभु पूछउंतोही,कहिअबुझाई कृपानिधि मोहि।यह प्रश्नाकुलजिज्ञासा वास्तव में गोस्वामी तुलसीदास के कृति विस्तार और जन सामान्य के संस्कार, परिष्कार के लिए है।

राम हमारे सामाजिक, नैतिक, राष्ट्रीय, धार्मिक, आध्यात्मिक और लौकिक सभी परिस्थितियों की समस्याओं के समाधान प्रश्नों के उत्तरहैं। वे मर्यादा पुरुषोत्तमयों ही नहीं कहे गए। वाल्मीकि, व्यास, तुलसी, कालिदास.,भवभूतिसभी ने उनके मर्यादा पुरुषोत्तमत्वकी ही कथा कही है। रामजी भारतीय संस्कृति के आदर्श अपने आचरण, मानवीय व्यवहार की उच्च मर्यादाएं स्थापित करने से बने हैं।

भारतीय मानस में आदर्श पुत्र, भाई, सखा, स्वामी,पति, राजा के रूप में प्रतिष्ठित राम का संपूर्ण जीवन लोक संग्रह के सत्कर्म से सुवासित है। यही उनकी प्रासंगिकता का रहस्य है कि उनका रामराज्य गोस्वामीजीसे लेकर महात्मा गांधी तक का आदर्श रहा, जिसके लिए राजा राम का कीर्तन हमारी सफलता सुनिश्चित करने वाला बन गया। ये दो शब्द थे, जिन्होंने भारत में विदेशियों के पैर जमने नहीं दिए। अंग्रेजों के भी पैर पडे तो वे जहां, जहां भारतीयों को ले गए, राम ही दासों के संबल रहे और ये रामदास ही वहां के शासक बन गए। भले ही राम का आदर्श अभी चरितार्थ नहीं हो पाया।

भारतीय आदर्श नायक राम प्रजारंजनके ऐसे प्रतिष्ठित प्रतीक हैं कि लोकतांत्रिक भारत के मन का लक्ष्य ही रामराज्य हैं क्योंकि राजा राम के राज्य में लोग सभी कष्टों से मुक्त, सुखोंसे युक्त और स्वधर्म का पालन करते हुए प्रीतिपूर्वक एकता एवं शांति का जीवन जीते हैं। राम ने राजा बनते ही सबको अभय दान दिया।

जो अनीति कुछ भाखौंभाई, तौमोहिबरजहुभय बिसराई। अर्थात्- मेरे किसी आदेश निर्देश, वचन में अनीति की गंध भी आए तो निर्भय होकर मुझे रोको। सारी प्रजा को भाई का संबोधन आज के लोकतंत्र में है कहीं ऐसा उदाहरण। ध्यान दें राम ने दो विमत, माता कैकेईऔर मंथरा को भी विरोध में नहीं रहने दिया। वास्तव में पिता महाराजा दशरथ का नहीं माता कैकेयी,सौतेली माता का आदेश था चौदह वर्ष का वनवास और उन्होंने उसका पालन करते हुए राज्य की शत प्रतिशत जनता का मत अपने पक्ष में पाकर राज्य का नेतृत्व किया, लोकतंत्र का आदर्श भी राम का राज्याभिषेक है। उनके जन्म दिन पर हम भी संकल्प लें कि हम हृदय से राम का आवाहन करेंगे। अपने देश का भाग्य संवारेंगे

राम बनकर। देश के नेता तो राम या राम जैसे ही होने चाहिए। हमारे नेता तो राम या राम जैसे ही हो सकते हैं। राजनीति को दस्युनीतिबना देने वाले नहीं। जो जोड-तोड से गणितीय आंकडे को पक्ष में करके सत्ताधीशबन बैठते है।