Saturday, June 5, 2010

भोजन से आध्यात्मक

मनुष्य अपनी इंद्रियों के माध्यम से संसार के नाना प्रकार के आकर्षणों से युक्त रूप, रस, शब्द, गंध व स्पर्श द्वारा विषयों का आस्वादन लेते हुए स्वास्थ्य, सुख और शांति की मृगमरीचिका में आजीवन विचरण करता रहता है। उसे स्वास्थ्य, सुख और शांति के बदले बार-बार शारीरिक, मानसिक, बौद्धिक व आत्मिक बेचैनी, चिंता व तनाव से जूझते रहना पडता है। चंचल मन, जिसे नियंत्रित करना वायु को नियंत्रित करने के समान दुष्कर है, वह इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं रख पाता। बुद्धि, इंद्रियों के विषयोन्मुखहोने के दुष्परिणाम जानते हुए भी न तो मन को रोक पाती है न इंद्रियों को।

सामान्य मनुष्य न तो सक्षम गुरुओं के संपर्क में होता है, न शास्त्रों के अध्ययन के द्वारा ही ज्ञानयोग, भक्तियोग,कर्मयोग, राजयोग, हठयोग को जीवन में अपना पाता है। ऐसी स्थिति में वह क्या करे? ऐसी स्थिति में सबसे पहले अपने भोजन पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि भोजन का सीधा प्रभाव मन और विचारों पर पडता है। कहते हैं जैसा खाओ अन्न, वैसा बनेगा मन। गीता में तीन प्रकार का भोजन बतलाया गया है- सात्विक, राजसी और तामसी। इनके अनुसार ही मन की प्रवृत्तियां और विचार बनते हैं। इन्हीं के अनुरूप हम वाणी से बोलते हैं और उन्हीं से प्रेरित होकर आचरण करते हैं। हम जैसा आचरण करते हैं उसका तद्नुरूपपरिणाम भी सुख, दु:ख, स्वास्थ्य अथवा बीमारी और कष्ट के रूप में प्राप्त करते हैं। तामसी भोजन करने वाला निश्चित रूप से आलसी, प्रमादी और अकर्मण्य होगा। राजसी भोजन करने वाले व्यक्ति में विलासी, क्रोधी, झगडालू प्रवृत्ति वाला होने, स्वादिष्ट होने की वजह से अधिक भोजन खाने की आदत वाला होने के कारण बार-बार अस्वस्थ होने की संभावना होती है। इसी प्रकार सात्विक भोजन के प्रभाव से मनुष्य श्रेष्ठ विचारों, सद्ग्रंथोंऔर सत्पुरुषों की ओर प्रेरित होता है। सदाचार, शांत, स्वभाव, स्वस्थ शरीर, रोगों से मुक्ति सात्विक भोजन के परिणाम होते हैं। उस व्यक्ति की कार्यक्षमता में वृद्धि होती है। उसके पारिवारिक एवं सामाजिक परिवेश में शांति और सामंजस्य होता है। मनुष्य का जीवन धृति, क्षमा, दमो, अस्तेयम्धर्म के दस लक्षणों को धारण करने योग्य बनकर शांति और आनंद प्राप्त करने की क्षमता से संपन्न हो सकेगा।

1 comment:

Satyawati Mishra said...

maine bahut se satvik bhojan karne walo ko bhi par ninda, chugali, irshya, daah, jalan, maan-apmaan, shreshthta ka ahankar,ityadi ki agni jaltey dekha hai/

Isake vipareet bahut se Tamasi Bhojan (mansahaar) karne walo ko bhi dusare ki bhalai, dusaro se prem, dusare ki khushi me khush ho jana aur sabhi sadhan sampann hone par bhi nirhankar aur sadharan jiwan jeena,Aur sabhi ke sath miljulkar rahatey dekha hai/

ise app kya kahenge?

Kya anyay purvak kamaye gaye dhan se shakahari satvik bhojan karna hi Shashtro ka Satvik Ahar hai?