Tuesday, September 11, 2012

युगावतार भगवान श्री कल्कि


आज वर्तमान समय में सम्पूर्ण धार्मिक जगत श्री कल्कि भगवान के बारे में जानने को उत्सुक है। आज विश्व में मानवता त्राहि - त्राहि कर रही है और जो पापाचार बढ़ रहे हैं उनको देखकर बहुत कष्ट होता है। इस स्थिति में सनातन धर्म की मान्यता के अनुसार भगवान के अवतार की ओर ध्यान जाता है। जैसे कि भगवान श्री कृष्ण गीता में कहते हैं - 

‘‘ यदा यदा हिधर्मस्य ग्लार्निभवति भारतः अभ्युत्थानम धर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम, 

परित्राणय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम्, धर्म संस्थापनार्थाय संभवामि युगे-युगे।’’

          अर्थात् जब - जब धर्म की हानि होती है, भूमि पर भार बढ़ता है तब-तब धर्म की संस्थापना के लिए, साधुजनों की रक्षा के लिए, दुष्टों के विनाश के लिए मैं युग-युग में अवतार लेता हूँ।

          भगवान सूर्य के प्रकाश की पहली किरण जब भारत की पवित्र भूमि को छूती थी तो सारा वातावरण पूजा की घंटियों और शंखनाद से गूंज उठता था। मंदिरों के पट खुल जाते थे और भगवान का अभिषेक सारे भारत में एक साथ आरम्भ हो जाता था। भारत भूमि ऋषिओं और देवताओं की भूमि है, इसके कण - कण में आध्यात्मिक चेतना है, जो भगवान का नाम लेकर जागती थी और भगवान का कीर्तन करते हुए सोती थी। महर्षि वेद-व्यास जी ने श्रीमद् भागवत् के 12 स्कन्ध के दूसरे अध्याय में स्पष्ट शब्दों में कहा है कि श्री कृष्ण जब अपनी लीला संवरण करके परम धाम को पधार गये उसी समय से कलियुग ने संसार में प्रवेश किया। उसी के कारण मनुष्यों की मति - गति पाप की ओर ढुलक गयी। धर्म कष्ट से प्राप्त होता है और अधः पतन सुखों से, इसलिए भोली भाली जनता को गिरने में देर नहीं लगी।

         सत्य सनातन धर्म शाश्वत धर्म है। भगवान का मानवता के उत्थान, दुष्टों के संहार, धर्म की संस्थापना और भक्तों की रक्षा के लिए पंच भौतिक संसार में साक्षात् होना ही अवतार कहलाता है। केवल भगवत् अवतार से ही धर्म की पूर्ण संस्थापना हो सकती है। महात्माओं के आने से केवल आंशिक रूप से ही सत्य की स्थापना हो पाती है।

          युग परिवर्तनकारी भगवान श्री कल्कि के अवतार का प्रायोजन विश्व कल्याण है। भगवान का यह अवतार ‘‘निष्कलंक भगवान’’ के नाम से भी जाना जायेगा। श्रीमद् भागवत महापुराण में विष्णु के अवतारों की कथाएं विस्तार से वर्णित हैं। इसके बारहवें स्कन्ध के द्वितीय अध्याय में भगवान के कल्कि अवतार की कथा कुछ विस्तार से दी गई, कहा गया है कि सम्भल ग्राम में विष्णुयश नामक श्रेष्ठ ब्राह्मण के पुत्र के रूप में भगवान कल्कि का जन्म होगा। वे देवदत्त नाम के घोड़े पर आरूढ़ होकर अपनी कराल करवाल (तलवार) से दुष्टों का संहार करेंगे तभी सतयुग का प्रारम्भ होगा।

‘‘ सम्भल ग्राम, मुख्यस्य ब्राह्मणस्य महात्मनः
 भवने विष्णुयशसः कल्कि प्रादुर्भाविष्यति।।

          भगवान श्री कल्कि सत्य सनातन धर्म में प्राण पुरूष की भाँति स्थान रखते हैं। कलियुग में सतयुग की ओर युग की धारा को मोड़ने की सामथ्र्य भगवान के ऐसे ही तेजस्वी रूप में संभव है। आज मनुष्य हौर उसके द्वारा बुना हुआ सामाजिक ताना बाना इन सभी बुराईयों से ग्रसित हो गये हैं। जहाँ धर्म, सत्य, न्याय, कर्तव्य, मातृ-पितृ भक्ति, गौसेवा, ज्ञान, सुसंस्कार, वैदिक गरिमा, सच्चे ब्रह्मानुरागी और संतोषी ब्राह्मण और उनका सम्मान करने वाले वीर और आन वाले क्षत्रिय और समाज के हितैषी, दानी और उदार वैश्य, कर्तव्य पथ पर चलने वाले शूद्र और देवी शक्ति की प्रतीक नारि शुचिता पर टिकना बहुत कठिन हो गया है। आज धर्म के नाम पर तथाकथित धर्मगुरू अपने शिष्यों और भक्तों को ईश्वर के वास्तविक रूप का ज्ञान कराने की बजाए स्वय ईश्वर बन बैठे हैं। जब गुरू ही ईश्वर हो जाए, तब कैसे और कौन करायेगा हमें ईश्वर की पहचान ? अधर्म और गुरूडम को, असत्य और अन्याय को और अविश्वास और अश्रद्धा को समाप्त करने भगवान श्री विष्णु का अन्तिम अवतार सम्भल में होगा। समस्त विश्व का कल्याण इस अवतार का प्रायोजन है।

          भगवान श्री कल्कि निष्कलंक अवतार हैं। उनके पिता का नाम विष्णुयश और माता का नाम सुमति होगा। उनके भाई जो उनसे बड़े होंगे क्रमशः सुमन्त, प्राज्ञ और कवि नाम के नाम के होंगे। याज्ञवलक्य जी पुरोहित और भगवान परशुराम उनक गुरू होंगे। भगवान श्री कल्कि की दो पत्नियाँ होंगी - लक्ष्मी रूपी पद्मा और वैष्णवी शक्ति रूपी रमा। उनके पुत्र होंगे - जय, विजय, मेघमाल तथा बलाहक।

          भगवान का स्वरूप (सगुण रूप) परम दिव्य एवम् ज्योतिमय होता है। उनके स्परूप की कल्पना उनके परम अनुग्रह से ही की जा सकती है। भगवान श्री कल्कि अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड नायक हैं। शक्ति पुरूषोत्तम भगवान श्री कल्कि अद्वितीय हैं। भगवान श्री कल्कि दुग्ध वर्ण अर्थात् श्वेत अश्व पर सवार हैं। अश्व का नाम देवदत्त है। भगवान का रंग गोरा है, परन्तु क्रोध में काला भी हो जाता है। भगवान पीले वस्त्र धारण किये हैं। प्रभु के हृदय पर श्रीवत्स का चिह्न अंकित है। गले में कौस्तुभ मणि सुशोभित है। भगवान पूर्वाभिमुख व अश्व दक्षिणामुख है। भगवान श्री कल्कि के वामांग में लक्ष्मी (पद्मा) और दाएं भाग में वैष्णवी (रमा) विराजमान हैं। पद्मा भगवान की स्वरूपा शक्ति और रमा भगवान की संहारिणी शक्ति हैं। भगवान के हाथों में प्रमुख रूप से नन्दक व रत्नत्सरू नामक खड्ग (तलवार) है। शाऽं्ग नामक धनुष और कुमौदिकी नामक गदा है। भगवान कल्कि के हाथ में पांचजन्य नाम का शंख है। भगवान के रथ अत्यन्त सुन्दर व विशाल हैं। रथ का नाम जयत्र व गारूड़ी है। सारथी का नाम दारूक है। भगवान सर्वदेवमय व सर्ववेदमय हैं। सब उनकी विराट स्वरूप की परिधि में हैं। भगवान के शरीर से परम दिव्य गंध उत्पन्न होती है जिसके प्रभाव से संसार का वातावरण पावन हो जाता है।
 

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