कई परामनोविज्ञान वेत्ता मानते हैं कि स्वप्न जगत परलोक व इहलोक का मिलन स्थल है। भाव जगत समय और स्थान की सीमा में नहीं बंधा है। पराचेतना चौथे आयाम के संसार में सब कुछ देख सकती है और एक ही क्षण में सृष्टि के आरंभ से अंत तक निगाह दौडा कर भूत, भविष्य व वर्तमान को जान सकती है। सपने में अवचेतन मन भावी घटनाओं का पूर्वाभास कर लेता है। यह बात बहुत पहले की है। रोज की तरह मैं उस रात भी अपना लेखन कार्य समाप्त कर सो गया। नींद में मैंने एक विचित्र सपना देखा। महल जैसा एक भव्य भवन है। उसके ठीक सामने विशाल उद्यान था। मैं और मेरा करीबी मित्र उस उद्यान में जाने के लिए बने राजमार्ग पर चल रहे हैं। हम दोनों शांत एवं निर्विकार भाव से चल रहे थे। मित्र के मुख पर विषाद की रेखाएं थीं। हम एक ऐसे स्थान पर पहुंचे जहां दो छोर नजर आ रहे थे। जिसके एक ओर प्रकाश था दूसरी ओर अंधकार। यहां आकर मित्र ने मुझे विदा किया। उसके पश्चात वह मित्र उस गहन अंधकार में जाकर न जाने कहां विलीन हो गया। दूसरे दिन प्रात: काल मैंने इस सपने का पूरा ब्यौरा अपनी डायरी में नोट कर लिया। मैंने अपने मित्र को इस सपने का पूरा वृत्तांत भी पत्र द्वारा लिखकर बताया। पत्र का उत्तर मित्र के भाई ने दिया था। जिसमें लिखा था कि छोटे भाई (उस मित्र की) की मृत्यु अचानक हो गई। आश्चर्य की बात यह थी कि उसकी मृत्यु ठीक उसी दिन और उसी समय पर हुई थी, जिस समय मैंने अपनी डायरी में उस सपने की घटना को लिखा। इसी प्रकार एक बार रात के अंतिम प्रहर में मैंने सपने में एकविमान की भूमि से जोरदार टक्कर देखी व कर्कश ध्वनि सुनी। ठीक दूसरे दिन सुबह समाचार पत्र में पढा कि चीन में एक विमान दुर्घटना में डेढ सौ व्यक्ति मारे गए।
विश्लेषण
डा. श्याम मनोहर व्यास के अतींद्रिय अनुभव मुख्यत: सपनों से जुडे हुए हैं। सपने का आरंभ सामान्य ढंग से हुआ, लेकिन बाद में कुछ परिवर्तन हुए। मित्र के चेहरे पर विषाद उभरना व्यक्ति के अंदर के डर का प्रतीक है। सपने में अंधकार में खो जाने का संकेत मृत्यु से जुडा हुआ है। शास्त्रों के अनुसार मृत्यु के समय व्यक्ति तीन अवस्थाओं से गुजरता है। मृत्यु की पहली अवस्था में शारीरिक और मानसिक यंत्रणा महसूस होती है। धीरे-धीरे पीडा समाप्त होकर चेहरे पर शांति छा जाती है। यह शरीर की मृत्यु होती है। लेकिन इसके बाद भी मस्तिष्क काम करता रहता है। बाहरी चेतना खत्म हो जाने के बाद भी आंतरिक चेतना बनी रहती है। धीरे-धीरे यह चेतना भी खत्म होने लगती है तथा दूसरी अवस्था का अंत होकर मस्तिष्क की भी मृत्यु हो जाती है। तीसरी अवस्था में आत्मा अपने शरीर को अपने से अलग देखती व महसूस करती है। तमाम अनुसंधानों के बाद ज्ञात हुआ है कि तीसरी अवस्था में दिवंगत आत्मा अपने आत्मबल के अनुसार दो घंटे से लेकर दस दिन, तेरह दिन, 45 दिन तथा 1 साल तक रह सकती है। पहले दो घंटे का समय दिवंगत आत्मा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। उसमें अपने शरीर के लिए प्रबल आकर्षण तथा पुन: शरीर धारण करने की भावना बलवती होती है। इसके बाद 10 दिन की अवधि में दिवंगत आत्मा का अपने परिवार से अगोचर संबंध बना रहता है। कई बार मुक्ति में 13 दिन अथवा एक वर्ष का समय भी लग जाता है। इसीलिए तेहरवीं और बरसी का विधान है। सूक्ष्म शरीर में प्रवेश से पहले अकसर आत्मा उन लोगों को देखना चाहती है, जिनसे उसका प्रबल लगाव होता है। इसी कारण डा.श्याम मनोहर व्यास के मित्र उन्हें दिखाई दिए। इसका एहसास उन्हें सपने के माध्यम से हुआ। इस प्रकार के अनुभव मृत्यु के बाद दो घंटे से लेकर 10 दिन, 13 दिन अथवा वर्ष भर तक हो सकते हैं। यदि किसी कारणवश आत्मा की मुक्ति न हो तो यह अनुभव लंबे समय तक हो सकते हैं।
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