1. शुभांगी की सबसे बडी दिक्कत थी कि उसमें एकाग्रता की कमी थी। एक पल में यहां तो अगले ही पल वहां। किताब लेकर बैठे दस मिनट भी नहीं बीतते कि किसी दोस्त का फोन आ जाता और वह भूल जाती कि क्या कर रही थी। बोर्ड के एग्जाम जैसे-जैसे नजदीक आ रहे थे मम्मी की परेशानी बढती जा रही थी।
छात्रों के लिए राय
एकाग्रता छात्र जीवन की सबसे महत्वपूर्ण पूंजी है। इसके बल पर काबिलीयत न होते हुए भी छात्र को सफलता प्राप्त करते देखा गया है। एकाग्रता की कमी से सबसे बडी परेशानी यह है कि आप अधिक देर तक टिक कर नहीं बैठ पाते। इसलिए आपको चाहिए कि बीस मिनट का लक्ष्य लेकर चलें। एकाग्रता दिमागी एक्सरसाइज है, इससे मस्तिष्क की ट्रेनिंग होती है। सबसे पहले अपने समय को नियमबद्ध करें। जो दिनचर्या तय की है यदि उस पर चलने की कोशिश सफल हुई है तो अपने को सराहें। इससे आगे के लिए प्रोत्साहन मिलेगा। यदि पढते-पढते थक गए या बोर हो रहे हैं तो अपने से बात करिए। यदि एकरसता से परेशान हो रहें हैं तो थोडा सा परिवर्तन लाने की कोशिश करें। अडिग नहीं थोडे लचीले बनें। ज्यादा सख्ती बेरुखी पैदा करती है। कहीं किताब खोलते ही मन घबराना न शुरू हो जाए। पढने के लिए शांत व व्यवस्थित जगह चुनें। कभी भी बेड पर या आरामकुर्सी पर बैठ कर न पढें, इससे आलस और नींद आती है। हमेशा सीधे बैठकर पढाई करें। न्यूयार्क में हाल में हुए अध्ययन से यह बात सामने आई कि चाय या कॉफी की जगह पानी पीना दिमागी विकास के लिए जरूरी है। इसलिए पानी खूब पिएं। जिस प्रकार वेटलिफ्टिंग से शरीर की ट्रेनिंग होती है उसी प्रकार दिमागी नियंत्रण के लिए योग और ध्यान भी जरूरी है।
अभिभावक के लिए
यह याद रखें कि उम्र के इस नाजुक दौर में किशोरों के लक्ष्य स्पष्ट नहीं होते तथा दिलो-दिमाग हकीकत में कम और कल्पना में ज्यादा रमते हैं। ऐसे में पेरेंट्स के सहयोग और सलाह की उन्हें बहुत जरूरत होती है।
2. दूसरी तरफ वे किशोर हैं जो प्रतिभाशाली व योग्य होने के बावजूद अति आत्मविश्वासी होने के कारण जानते हुए भी प्रश्नों के उत्तर गलत दे आते हैं। कक्षा में हमेशा प्रथम आने वाला हिमांशु जब बोर्ड की परीक्षा देकर बाहर निकला तो बहुत खुश था उसे सभी प्रश्नों के उत्तर मालूम थे। सारा पेपर उसे आता था। जब उत्तर मिलाने शुरू किए तो चेहरा उतरते देर नहीं लगी। असावधानीवश आते हुए जवाब भी उसने गलत दे दिए थे। क्योंकि क्या पूछा जा रहा है उसने समझा नहीं, शुरू की दो पंक्तियों को पढ कर ही जवाब लिख दिया।
छात्रों के लिए
इस उम्र में चिंता कम बेफिक्री ज्यादा होती है। ऐसे में अपने को व्यवस्थित रखना आना बहुत जरूरी है। पेपर सामने आने पर उसे सबसे पहले समय सीमा में बांधो। प्रश्न को एक बार नहीं दूसरी बार पढने के बाद हल करो। अपने मस्तिष्क को केंद्रित करने के लिए लगातार एक्सरसाइज करते रहो।
अभिभावकों के लिए
एकाग्रता के लिए सबसे अधिक जिम्मेदार अभिभावक ही होते हैं। घर पर किशोर अपना समय किस प्रकार कहां लगा रहा है व कितनी एकाग्रता से क्या कर रहा है यह देखना और समझना जरूरी है। उसे उसकी रुचि के काम या दिमागी कसरत वाले गेम में व्यस्त रखें। अधिक से अधिक पढने की आदत डालें। एकाग्रता के लिए इससे बेहतर एक्सरसाइज नहीं। ये कोर्स की किताबों की जगह, कहानी या उपन्यास भी हों तो कोई बात नहीं।
3. अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना बहुत जरूरी है। इस उम्र में ध्यान भटकने की परेशानी बहुत होती है। पल में यहां तो पल में वहां विचार पहुंच जाते हैं। शालू का मसला भी ऐसा ही था, वह परीक्षा देने गई हिंदी की और पेपर था सोशल साइंस का। रोते-रोते दिमाग खराब हो गया। भले ही कोर्स पूरा तैयार हो लेकिन अंतिम तैयारी का भी तो कोई मतलब होता है। राहुल तो उससे भी आगे निकला बोर्ड की परीक्षा देने गया तो रोल नंबर घर ही भूल गया। यह सब घटनाएं दिमागी अस्थिरता की निशानी हैं। इसी क्रम में गजेन है, जो इंजीनियरिंग ड्राइंग की परीक्षा देने गया और जरूरी इंस्ट्रूमेंट ले जाना ही भूल गया। योग्य छात्र होने के कारण उसे अध्यापक से लेकर सहपाठियों तक ने सहयोग दिया, लेकिन इससे समय तो नष्ट हुआ ही।
छात्रों के लिए
हम जब बच्चों को अपनी भावनाओं पर नियंत्रण रखना सिखाते हैं तो सबसे पहला पाठ यही पढाते हैं कि अपने मूल्यों को समझो। भारतीय होने के कारण अपनी जडों से अलग होना आसान और सही निर्णय नहीं। क्रोध से बुद्धि का नाश होता है, सही निर्णय लेने की क्षमता प्रभावित होती है। काम, क्रोध, लोभ और मोह को काबू में रखो। चीजों को बढा-चढाकर नहीं, उनके सही रूप में देखो और समझो। एक गलत कदम आगे के कितने कदमों को गलत करेगा यह इस उम्र में नहीं पता होता, लेकिन यह जानना जरूरी है।
अभिभावकों के लिए
सबसे ज्यादा परेशानी भावनाओं के मामले में इसलिए आ रही है क्योंकि किशोर अकेले होते जा रहे हैं। एकल परिवारों में पलने वाले और कामकाजी स्त्रियों के बच्चे अपने को अकेला महसूस करते हैं। उनकी भावनाओं को समझने और उन्हें जानने का वक्त पेरेंट्स के पास है ही नहीं। सबसे अनिवार्य कदम इस दिशा में यह होगा कि अभिभावक इस परेशानी को समझें व क्वालिटी टाइम बच्चे के साथ बिताएं।
4. इसी अकेलेपन से उपजती है पियर प्रेशर की समस्या। वेणी अकेली बच्ची होने के कारण अंतर्मुखी रही, किशोर हुई तो मां की नौकरी ने उसे और अकेला कर दिया। ऐसे में दोस्तों के सिवाय उसका कोई साथी ही नहीं था। जो दोस्त कहें वही अंतिम रूप से मान्य होता, भले ही गलत हो।
छात्रों के लिए
इस उम्र में शेयरिंग की समस्या से गुजरना आम है। हमसे आप बेझिझक बात करते हैं लेकिन अपने परिवारजन से बात करने में कतराते हैं। उनसे दोस्ती करने का प्रयास करें।
अभिभावकों के लिए
एक बच्चे की तुलना दूसरे से न करें। जब दो इंसानों की शक्ल एक सी नहीं होती तो अक्ल कैसे एक सी हो सकती है। हो सकता है कि एक बच्चा पढाई में अच्छा हो तो दूसरा अन्य किसी क्षेत्र में विलक्षण हो। इसे पहचान कर प्रोत्साहन देना भी आवश्यक है। सबसे जरूरी है कि आप किशोर होते बच्चे के दोस्त बनें। दोस्त बनते ही बहुत सी समस्याएं अपने आप आसानी से हल हो जाएंगी।
5. किसी विषय को लेकर मन में डर समाते भी इस उम्र में देखा जाता है। पल्लवी की मम्मी को स्कूल में बुला कर गणित के अध्यापक ने बताया कि न तो यह कक्षा कार्य ठीक से करती है और न ही गृहकार्य करके लाती है। पल्लवी अति संवेदनशील होने के कारण अपने कडक टीचर से तालमेल नहीं बैठा पा रही थी। जरा सी कोशिशों ने उसे कक्षा के योग्य छात्रों में ला खडा किया।
छात्रों के लिए
हर छात्र का अपना एप्टीटयूड होता है। जब हमारे पास कोई समस्या लेकर आता है तब हम सबसे पहले गलती की जड ढूंढते हैं। फोबिया होने की भी अलग-अलग वजह होती हैं। कई बार योग्यता का अभाव होता है तो कई बार अतिरिक्त योग्यता होने पर भी आप तालमेल नहीं बैठा पाते। इसके लिए गलती को समझना और गहराई से जानना जरूरी होता है।
अभिभावकों के लिए
अपनी संतान की बेहतरी के लिए जितने प्रयास आपको करने पडें कम हैं। उसके पास बैठिए और समझने की कोशिश करें कि कहां क्या कमी है जिसे सुधारा जा सकता है। यदि आप काउंसलर की सहायता लेना चाहते हैं तो भी आपके ब"ो के सारे विवरण होने जरूरी हैं।
न डरें बोर्ड परीक्षा से
दस से बारह साल तक अपने स्कूल में परीक्षा देने के स्थान पर बोर्ड परीक्षा के नाम से ही अकसर छात्रों के मन में डर हावी हो जाता है। यदि समझदारी से थोडी भी तैयारी की गई है तो डरने की जरूरत नहीं है। उत्तर पुस्तिका में आपकी राइटिंग साफ हो। हर उत्तर थोडा सा स्पेस देकर लिखें जिससे जांचकर्ता को समझने में कम से कम परेशानी हो। प्रश्न पत्र मिलने पर ध्यान से उसे पढें तथा समय के अनुरूप हर प्रश्न को बांट लें। अच्छी तरह आने वाले उत्तर पहले दें। यदि एक प्रश्न के कई भाग हैं तो सभी के उत्तर एक ही जगह दें। अंग्रेजी विषय को चार भागों में बांटा जाता है रीडिंग (पढना), राइटिंग (लेखन), ग्रामर (व्याकरण) और प्रोज (गद्य)। अकेले रीडिंग हिस्से के नंबर 34 हैं। यदि थोडी भी तैयारी हो तो पास होने का प्रतिशत सुरक्षित हो जाता है।
No comments:
Post a Comment