Friday, September 18, 2009

ग्रह-नक्षत्र का प्रभाव

हमारा शरीर ब्रह्मांड का ही एक अंश है। शास्त्रों में कहा गया है कि यत पिंडेतत ब्रह्मांडे।यह शरीर पांच तत्वों से बना हुआ है। जिन तत्वों से शरीर बना है, उन्हीं तत्वों से पशु-पक्षी, पेड-पौधे, ग्रह-नक्षत्र भी बने हैं।

संपूर्ण ब्रह्मांड में पृथ्वी, चंद्रमा, सूर्य, सौरमंडल, सैकडों सूर्यो से बनी नीहारिकाएंऔर नीहारिकाओंसे बनी आकाशगंगा भी आती है। सौरमंडल अनेक ग्रहों से बना है। हमारी पृथ्वी सूर्यमंडल का एक छोटा अंश है। पृथ्वी सूर्यमंडल के एक कोने में है और सूर्य की परिक्रमा कर शक्ति संग्रह करती है। इसलिए इस पृथ्वी पर रहने वाले प्रत्येक जीव पर स्वभाविकरूप से ग्रह-नक्षत्र का गहरा प्रभाव पडता है।

प्राय: ऐसा कहा जाता है कि अमुक व्यक्ति को शनिचराग्रह लगा हुआ है या शनि की साढेसाती लगी हुई है। इसका अर्थ है कि सूर्यमंडल का एक प्रभावशाली ग्रह शनि पृथ्वी के मनुष्य को प्रभावित कर रहा है।

यह खोज हमारे ऋषि-मुनियों की है। विज्ञान कहता है कि पृथ्वी के केंद्र में मैग्नेटिकऔर फेरसऑक्साइडहै, जिसके कारण उसमें गुरुत्वाकर्षण है। इसका सीधा अर्थ यह है कि पृथ्वी में आकर्षण शक्ति की वजह से मनुष्य का शरीर प्रतिक्षण प्रभावित होता रहता है। इस दृष्टि से मनुष्य सीधे सूर्य से प्रभाव ग्रहण करता है।

हम जो सांस लेते हैं, वह ऑक्सीजनहमें परोक्ष रूप से सूर्य से ही प्राप्त होती है, क्योंकि सूर्य से ऊर्जा लेकर ही पेड-पौधे ऑक्सीजनका निर्माण करते हैं। सूर्योदय होते ही पूरा वातावरण ऑक्सीजन,नाइट्रोजन और कार्बन डाइऑक्साइडसे भर जाता है। वातावरण में अनुमानत:41प्रतिशत ऑक्सीजन,4प्रतिशत कार्बन डाइऑक्साइडऔर 55प्रतिशत नाइट्रोजन रहती है। नाइट्रोजन को हम फलों-सब्जियों के माध्यम से ग्रहण करते हैं। प्रात:काल में ऑक्सीजनअधिक रहती है, जिसमें प्राण तत्व मौजूद रहता है। इसके अलावा, वातावरण में अशुद्ध वायु के रूप में निगेटिव ऊर्जा भी रहती है, जिससे मनुष्य बीमार पड जाता है।

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