डासना स्थित प्राचीन देवी मंदिर में आज तक जो भी श्रद्धा के साथ माई के दरबार में गया वह खाली हाथ वापस नहीं आया। क्षेत्रीय लोगों व मंदिर के महंत का दावा है कि मंदिर के पास स्थित तालाब में नहाने से चर्मरोग दूर हो जाता है।
शारदीय नवरात्रके अवसर पर मंदिर में नौ दिवसीय शतचंडी यज्ञ का आयोजन किया जा रहा है। इस यज्ञ में देश के 11अखाडों के धर्म प्रतिनिधि हिस्सा लेंगे। मंदिर के महंत का दावा है कि देवी चंडी की पूजा मुगल काल से चली आ रही है। मुगलों शासक ने मंदिर पर हमला बोल दिया गया था। उस दौरान मंदिर के सेवादार ने देवी की मूर्ति तालाब में डाल दिया था। देवी मंदिर के पास में ही महाभारत काल का बना हुआ शिवमंदिर भी मौजूद है।
गाजियाबाद से आठ किमी दूर हापुड रोड पर जेल रोड से दक्षिण दिशा में डासना कस्बे में चंडी देवी का मंदिर है। देवी की मूर्ति कसौटी पत्थर से निर्मित है। बताया जाता है कि इस तरह की मूर्ति उत्तर भारत में अकेली प्रतिमा है। मंदिर के महंत यति नरसिंहानंद सरस्वती का दावा है कि देश में इस तरह कसौटी पत्थर की तीन व पाकिस्तान में एक प्रतिमा हैं। कलकत्ता के दक्षिणेश्वरकाली मां की प्रतिमा, गोहाटी में कामाख्यादेवी, डासना में काली मां की व पाकिस्तान में इंग्लाजदेवी की मूर्ति कसौटी पत्थर की बनी है।
स्थानीय श्रद्धालुओं का दावा है कि मंदिर में प्रतिमा को जितनी बार निहारा जाता है प्रतिमा की भाव भंगिमा बदली नजर आती है। बताया जाता है कि मुगल शासकों ने हमले के दौरान मंदिर को नष्ट कर दिया था। तत्कालीन मंदिर के पुजारी ने देवी प्रतिमा को तालाब में डूबो दिया था।
कई सालों के बाद मंदिर में जगद्गिरि महाराज ने तपस्या की थी। एक दिन स्वप्न में देवी ने जगद्गिरि को स्वप्न में आदेश दिया कि मुझे तालाब से निकाल कर मंदिर में प्रतिष्ठापित करो। श्री गिरि ने स्वप्न टूटते ही तालाब से प्रतिमा निकालकर मंदिर में प्रतिष्ठापित किया था। कई वर्षो के बाद मौनी बाबा व ब्रम्हानंदसरस्वती ने मंदिर के जीर्णोद्धार में विशेष सहयोग किया था। एक मान्यता यह भी है कि पाडंवोंने अज्ञातवास के दौरान मंदिर में समय व्यतीत किया था। पांडव काल का शिव मंदिर भी मौजूद है।
मंदिर के पुजारी स्वामी केशवानंदका दावा है कि मंदिर के निर्माण के समय घना जंगल था। मंदिर के पास तालाब में एक शेर प्रतिदिन पानी पीने आता था। पानी पीने के बाद शेर बिना किसी को कोई हानि पहुंचाए देवी प्रतिमा के सामने कुछ देर तक बैठने के बाद वापस चला जाता था। बताया जाता है कि शेर ने अपने प्राण मंदिर में त्याग दिए थे। उसकी मौत के बाद देवी प्रतिमा के सामने शेर की प्रतिमा बनाई गई, जो आज भी मौजूद है।
मंदिर के महंत का दावा है कि देवी भक्तों द्वारा दी गई सात्विक पूजा स्वीकार करती हैं। तांत्रिक पूजा नहीं स्वीकार करती हैं। नवरात्रके अवसर पर आज भी कई प्रांतों के लोग देवी दर्शन के लिए मंदिर में पहुंचते हैं। मंदिर के पास ही रामलीला का मंचन भी किया जाता है। वर्तमान में तालाब उपेक्षित होने के कारण कमल, कुमुदनीव जंगली घासों से अटा हुआ है।
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