Saturday, April 4, 2009

कैसा पैसा?

किसी समय चार मित्र बहुत बडी मात्रा में धन-सोना, चांदी, हीरे, जवाहरात आदि की खोज करना चाहते थे। उन लोगों ने एक विवेकी व्यक्ति से खजाना पाने का उपाय पूछा।

उस व्यक्ति ने उन चारों मित्रों को खजाने की खोज में किसी खास पहाड पर जाने के लिए कहा। जैसे ही वे पहाड पर चढे, उन्हें एक गुफादिखाई दी, जिसमें ढेरों चांदी रखी हुई थी। एक मित्र ने फैसला किया कि वह चांदी लेकर घर चला जाएगा। शेष तीनों मित्र पहाड पर चढते गए। आगे उन्हें एक गुफादिखाई दी, जिसमें सोना था। एक मित्र ने कहा कि वह सोना लेकर वापिस जा रहा है। शेष दोनों मित्र आगे बढे, तो उन्हें एक और गुफादिखाई दी, जिसमें हीरे-जवाहरात रखे हुए थे। एक मित्र ने कहा कि वह इन्हें लेकर घर जा रहा है।

आखिरी मित्र और ऊपर चढता गया। वह मित्र जब ऊपर पहुंचा, तो उसने देखा कि वहां एक व्यक्ति बैठा हुआ था, जिसके सिर पर एक चक्र घूम रहा था। उसने ऊपर चढने वाले व्यक्ति से पूछा, तुम यहां इस पहाड पर क्यों आए हो? आगंतुक मित्र बोला, मैं एक बडे खजाने की खोज में यहां आया हूं। मेरे तीन मित्रों को जो कुछ रास्ते में मिला, लेकर चले गए हैं। मुझे विश्वास है कि यहां कहीं उससे भी अधिक बडा खजाना गडा हुआ है और मैं उसे पाना चाहता हूं।

जो तुम ढूंढ रहे हो, उसका पता मैं तुम्हें बता सकता हूं। थोडी देर के लिए मुझे इस चक्र से मुक्त कर दो ऊपर बैठे उस व्यक्ति ने कहा। आगंतुक व्यक्ति मान गया। मैं अब बहुत प्रसन्न हूं कि मैं इस भार से मुक्त हो गया। सच तो यह है कि मैं इसे दशकों से ढो रहा था। तुम्हारी तरह, मैं भी अपने मित्रों के साथ खजाने की खोज में यहां पहुंचा था। मुझे भी कुछ अधिक पाने की चाह थी। अंतत:मैं तुम्हारी तरह इस पर्वत की चोटी पर पहुंच गया। मुझे भी एक चक्रधर मिला था। जो मैंने तुम्हें कहा है, उसने भी मुझे वही कहा था। मैं भी तुम्हारी तरह उस मायाजाल में फंसगया था, जिससे अब मैं मुक्त हो चुका हूं।

अब तुम इस चक्र में फंसे रहो, जब तक और कोई लोभी व्यक्ति तुम्हें इससे मुक्त नहीं कराता। यह कह कर वह व्यक्ति चला गया। उस व्यक्ति का ऐसा हाल उसके लोभ के कारण हुआ। कहते हैं कि हर पाप का जन्म लोभ से भी होता है। शेख सादी कहते हैं कि लालची व्यक्ति पूरी दुनिया पाने पर भी भूखा रहता है, लेकिन संतोषी व्यक्ति एक रोटी से भी पेट भर लेता है। इंसान यदि लालच को ठुकरा दे, तो बादशाह से भी ऊंचा दर्जा हासिल कर सकता है। क्योंकि संतोष ही हमेशा इंसान का माथा ऊंचा रख सकता है।

धन जीवन-यात्रा के लिए महत्वपूर्ण साधन है। जीवन में हमें हर कदम पर धन की आवश्यकता पडती है। संभव है कि धन के अभाव में हमारा जीवन कष्टमयहो जाए। वेदों में कहा गया है- हम धन-ऐश्वर्य आदि के स्वामी बनें। लेकिन साथ ही यह भी कहा गया है कि हम धर्मपूर्वक,सच्चाई और ईमानदारी से ही धन कमाएं। जब लोभ बढता है, तो हमारी अतृप्त इच्छाएं भी बढने लगती हैं। इसी कारण दिन-रात हम यही सोच कर चिंतित होते रहते हैं कि कैसे अधिक से अधिक धन कमाया जाए! एलबर्ट आइंस्टीनका कहना था संसार में मौजूद किसी भी प्रकार का धन-ऐश्वर्य मानवता को आगे ले जाने में सहायक नहीं हो सकता। जो कुछ हमारे पास है, उसमें संतुष्ट रहना ही हमारी सबसे बडी संपत्ति है, क्योंकि सभी इच्छाओं को मन शांत नहीं कर सकता। इसका मतलब यह नहीं है कि हमें धन-सम्पदा कमाने में प्रयत्न नहीं करना चाहिए, क्योंकि धन-सम्पत्ति प्राप्त करने की अंधी दौड ही हमें विनाश की ओर ले जाती है। लालसापूर्णजीवन और अंधाधुंध सम्पत्ति प्राप्त करने की दौड त्यागने में ही भलाई है। हम पैसे से सुख-साधन खरीद सकते हैं, लेकिन सुख और शान्ति नहीं।

हमारे मनीषियोंने सच ही कहा है कि धन सम्पत्ति पाने की होड हमें गर्त में ले जाती है, लेकिन जो साधक लोभरहितसत्य की राह पर चलते हैं, वे बुद्धिमान माने जाते हैं।

सच तो यह है कि सच्चा सुख और आनंद की प्राप्ति केवल धन-सम्पत्ति पाने की होड में लगे रहने से नहीं हो सकती है। दरअसल, हमें उतनी ही मात्रा में धन-सम्पत्ति की कामना करनी चाहिए, जिससे कि हमारा चारित्रिक और आध्यात्मिक विकास संभव हो सके।

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