तिरुपतिमंदिर में जब फिल्म अभिनेता अमिताभ बच्चन भगवान वेंकटेश्वरके दर्शन के लिए पहुंचे, तो उन्होंने बारह करोड रुपये का दान दिया। यही वजह है कि यह भारत का सबसे अमीर मंदिर कहलाता है।
कहते हैं कि भगवान वेंकटेश्वरके चरणों में भक्तगण हीरे की थैली भी भेंट करते हैं। यहां सभी धर्मो के लोग बडी संख्या में पहुंचते हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां आप भगवान से जो कुछ मांगते हैं, वह मिल जाता है। सात पहाडों वाला मंदिर सात पहाडों से मिलकर बना है तिरुमाला पहाड और इस पर स्थित है तिरुपतिमंदिर। सातों पहाड को शेषाचलमया वेंकटाचलमभी कहते हैं। तिरुमाला पहाड की चट्टानें पूरे विश्व में दूसरी सबसे पुरानी चट्टानें हैं। तिरुपतिमंदिर में निवास करते हैं भगवान वेंकटेश्वर।
भगवान वेंकटेश्वरको विष्णु का अवतार भी माना जाता है। यह मंदिर समुद्र से 28सौ फीट की ऊंचाई पर स्थित है। तिरुपतिएक महत्वपूर्ण तीर्थस्थान है, जहां भक्त अपने भगवान की एक झलक पाने के लिए घंटों लाइन में खडे रहते हैं। यह मंदिर तिरुपतिबालाजीमंदिर भी कहलाता है। अद्भुत वास्तुकला यह मंदिर आंध्रप्रदेश के चित्तूरजिले में स्थित है। इसे तमिल राजा थोंडेईमानने बनाया था। बाद के समय में चोल और तेलुगू राजाओं ने इसे और विकसित किया। यही वजह है कि इस पर द्रविडियन[तमिल] कला की स्पष्ट छाप देखी जा सकती है।
वास्तव में, मंदिर की वास्तुकला अद्भुत है। विजयनगरके राजा कृष्णदेवराय ने इस मंदिर में सोना, हीरे-जवाहरात आदि का दान दिया था। उसी समय से भक्तगण इस मंदिर को खूब दान देते आ रहे हैं। इस मंदिर का गोपुरम आकर्षण का मुख्य केंद्र है। मंदिर के गर्भगृह के ऊपर स्थित है आनंद निलयम,जो पूरी तरह सोने के प्लेटों से बना है। मंदिर की बनावट मंदिर को तीन भागों में बांटा जा सकता है। बाहरी प्रांगण को ध्वजास्तंभकहते हैं। मंदिर स्थल पर विजयनगरके राजा कृष्णदेवराय और उनकी पत्नी की मूर्ति भी स्थापित है। इसके अलावा, अकबर के एक मंत्री टोडरमलकी मूर्ति भी लगी हुई है। मुख्य मंदिर में भगवान की मूर्ति रखी हुई है, जिसमें भगवान विष्णु और शिव दोनों का रूप समाया हुआ है। सेवा और उत्सव तिरुपतिमंदिर में प्रतिदिन भगवान वेंकटेश्वरकी पूजा होती है। दिन की शुरुआतसुबह तीन बजे सुप्रभातम, यानी भगवान को जगाने से होती है। सबसे अंत में एकांत सेवा, यानी भगवान को सुलाया जाता है। यह सेवा रात के एक बजे तक संपन्न होती है।
भगवान की प्रार्थना-स्तुति प्रतिदिन, साप्ताहिक और पक्षीय रूपों में आयोजित की जाती है, जिसे सेवा और उत्सव कहते हैं। देवता को दिया जाने वाला चढावा या दान हुंडी कहलाती है। हर वर्ष सितंबर महीने में यहां ब्रह्मोत्सवमनाया जाता है।
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