अयोध्या में महाराजा दशरथ को नवरात्रि के अंतिम दिन पुत्र रत्न प्राप्त होने पर मनाए गए रामजन्मोत्सवका वाल्मीकीय रामायण और गोस्वामी तुलसीदास कृत रामरचितमानस में अत्यधिक मनोरम वर्णन किया गया है। इस दिन मानो शक्ति पूजा का प्रसाद प्राप्त हुआ। वासंतीनवरात्रि की नौमीतिथि को शक्तिधर राम अवतरित हुए और अपने कृत्यों और सुयश से इस नवरात्रि को राम- नवरात्रि एवं नवमी को रामनवमी के रूप में प्रसिद्धि प्रदान की।
राम का रामत्वकथनी से अधिक करनी के माध्यम से व्यक्त हुआ। राम की पहचान एक बान यहां बान द्वि अर्थक है वाणी और वाण। उनका कथन ही उनका दृढसंकल्पहै। जिस पर वाण तान दिया, उसको दण्डित करके ही छोडा। उनकी शक्ति शरणागत की रक्षा और आतताईअत्याचारियोंके मान, मर्दन के लिए है।
राम में कथनी, करनी, गुण, स्वभाव, दृढता,कोमलता,क्रोध क्षमाशीलताआदि सभी अनुकरणीय है। राम मर्यादा, रक्षार्थसतत सृजनशील है। महर्षि वाल्मीकि के राम अवतार नहीं, देवर्षिनारद द्वारा अनुशंसित तीनों लोकों में आदर्श पुरुष है, जिनका वे गुण-गान करते
है। वे कल्पना नहीं परम ज्ञानी थे। नारदजीने कसौदीपर परखकर बताया है कि वे हाड मांस के पुतले के रूप में वास्तव में धरती माता के यशस्वी
पुत्र है। वास्तव में वे कीर्तनीयहै। तीनों लोको में मन की गति से भ्रमणशील नारद सभी प्राणियों के मुखर अभिमत को अभिव्यक्त करते हैं, उन्हें आदर्श पुरुष कहकर। वाल्मीकि जी ने उन्हें सशरीर धर्म कहा है।
यहां ध्यान देने योग्य है कि नारद जी के शाप से ही श्री हरि, विष्णु या श्रीमन्नारायणको मनुज रूप में अवतरित होकर उनके शाप से राक्षस
बने रावण को मारने आना पडा है। वे सतत सहज नर लीला कर रहे हैं, कोई भी संदेह नहीं कर पाया कि वे भगवान् हैं। नारद जी के शाप का मान रखने के लिए ही वे खग,मृग वृक्ष एवं लताओं से पूछते फिर रहे हैं कि आपने मृगनयनीसीता को देखा है, शिव पत्नी सती ने महर्षि अगस्त्य और शिवजी की पारस्परिक राम कथा सुनकर भी शिवजी से तर्क करना नहीं छोडा कि वे अज्ञ के समान जड पदार्थो से पत्नी का पता पूछ रहे हैं, वे सच्चिदानंद कैसे हो सकते हैं, उनका भ्रम दूर करने
के लिए शिवजी उन्हें परीक्षा लेने के लिए भेज देते हैं और वे सीता बनकर रामजी के सामने पडती हैं किंतु उनका भेद खुल गया। यहीं गीता की उक्ति चरितार्थ होती है। संशयात्माविनश्यति।
पति से परित्यक्त सती को पुन:पति की प्राप्ति के लिए नया शरीर धारण कर घोर तप करना पडता है। दक्ष शिव शरीर को वे दक्ष के ही यज्ञ कुंड में भस्म कर हिमालय पुत्री पार्वती बनती हैं। शक्ति भी ब्रह्मके निरादर का दंड भोगती है। सदेह शक्ति ने पार्वती के रूप में पति को प्रसन्न देख पूर्वजन्म की स्मृति बनी रहने से राम मूलक चौदह प्रश्न किए रामुकवन प्रभु पूछउंतोही,कहिअबुझाई कृपानिधि मोहि।यह प्रश्नाकुलजिज्ञासा वास्तव में गोस्वामी तुलसीदास के कृति विस्तार और जन सामान्य के संस्कार, परिष्कार के लिए है।
राम हमारे सामाजिक, नैतिक, राष्ट्रीय, धार्मिक, आध्यात्मिक और लौकिक सभी परिस्थितियों की समस्याओं के समाधान प्रश्नों के उत्तरहैं। वे मर्यादा पुरुषोत्तमयों ही नहीं कहे गए। वाल्मीकि, व्यास, तुलसी, कालिदास.,भवभूतिसभी ने उनके मर्यादा पुरुषोत्तमत्वकी ही कथा कही है। रामजी भारतीय संस्कृति के आदर्श अपने आचरण, मानवीय व्यवहार की उच्च मर्यादाएं स्थापित करने से बने हैं।
भारतीय मानस में आदर्श पुत्र, भाई, सखा, स्वामी,पति, राजा के रूप में प्रतिष्ठित राम का संपूर्ण जीवन लोक संग्रह के सत्कर्म से सुवासित है। यही उनकी प्रासंगिकता का रहस्य है कि उनका रामराज्य गोस्वामीजीसे लेकर महात्मा गांधी तक का आदर्श रहा, जिसके लिए राजा राम का कीर्तन हमारी सफलता सुनिश्चित करने वाला बन गया। ये दो शब्द थे, जिन्होंने भारत में विदेशियों के पैर जमने नहीं दिए। अंग्रेजों के भी पैर पडे तो वे जहां, जहां भारतीयों को ले गए, राम ही दासों के संबल रहे और ये रामदास ही वहां के शासक बन गए। भले ही राम का आदर्श अभी चरितार्थ नहीं हो पाया।
भारतीय आदर्श नायक राम प्रजारंजनके ऐसे प्रतिष्ठित प्रतीक हैं कि लोकतांत्रिक भारत के मन का लक्ष्य ही रामराज्य हैं क्योंकि राजा राम के राज्य में लोग सभी कष्टों से मुक्त, सुखोंसे युक्त और स्वधर्म का पालन करते हुए प्रीतिपूर्वक एकता एवं शांति का जीवन जीते हैं। राम ने राजा बनते ही सबको अभय दान दिया।
जो अनीति कुछ भाखौंभाई, तौमोहिबरजहुभय बिसराई। अर्थात्- मेरे किसी आदेश निर्देश, वचन में अनीति की गंध भी आए तो निर्भय होकर मुझे रोको। सारी प्रजा को भाई का संबोधन आज के लोकतंत्र में है कहीं ऐसा उदाहरण। ध्यान दें राम ने दो विमत, माता कैकेईऔर मंथरा को भी विरोध में नहीं रहने दिया। वास्तव में पिता महाराजा दशरथ का नहीं माता कैकेयी,सौतेली माता का आदेश था चौदह वर्ष का वनवास और उन्होंने उसका पालन करते हुए राज्य की शत प्रतिशत जनता का मत अपने पक्ष में पाकर राज्य का नेतृत्व किया, लोकतंत्र का आदर्श भी राम का राज्याभिषेक है। उनके जन्म दिन पर हम भी संकल्प लें कि हम हृदय से राम का आवाहन करेंगे। अपने देश का भाग्य संवारेंगे
राम बनकर। देश के नेता तो राम या राम जैसे ही होने चाहिए। हमारे नेता तो राम या राम जैसे ही हो सकते हैं। राजनीति को दस्युनीतिबना देने वाले नहीं। जो जोड-तोड से गणितीय आंकडे को पक्ष में करके सत्ताधीशबन बैठते है।
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