संयम व सावधानी, ये दोनों विवेक के अहम अंग है। इनसे मनुष्य में पनपने वाले बुरे विचार नष्ट होते है। साथ ही इससे इंसान मे धैर्य और सहनशक्ति बढती है। यानी संसार मे संयम मनुष्य हर क्षेत्र में विजयी होकर तरक्की कर सकता है और सुखी रहता है।
सांसारिक मोह-माया से मनुष्य यदि मुंह मोड ले और संयम से जीवन यापन करना शुरू कर दे तो उसके जीवन की अनेक कठिनाईयां व दुश्वारियां स्वयं ही खत्म हो जाएंगी। जिस प्रकार मनुष्य यदि गाडी चलाते समय मन मस्तिष्क पर नियंत्रण रखते हुए सावधानी पूर्व गाडी चलाता है तो वह सुरक्षित अपने गंतव्य स्थान पर पहुंच जाता है। अगर वह इसमे चूक करता है तो उसे परेशानियो का सामना करना ही पडता है। इसी प्रकार हमें अपनी जीव यात्रा मे मन की अनियंत्रित इच्छाओ पर ब्रेक लगाते हुए पांचो इंद्रियो शरीर, जीभ, आंख, नाक व कान रूपी व्हील कंट्रोलर पर सावधानी से नियंत्रण रखते हुए संयम रूपी टायरो की हवा चैक करते रहना चाहिए।
अक्षरों की वर्णमाला सीमित है परन्तु शब्दों के प्रयोग करने का ढंग अलग-अलग है। यदि शब्दों का प्रयोग संयम के दायरे में किया जाए तो इंसान नर से नारायण बन सकता है। यदि संयम खो दिया जाए तो इंसान समाज में अपना महत्व खो देता है। अर्थात वाणी संयम हमारे जीवन के उत्थान के लिए बहुत बडा कारण बन सकता है। वाणी के संयम प्रयोग से घर में कभी कलह नहीं होती। यदि इंसान संयमित वाणी का प्रयोग करता रहे तो कठोर वचन बोलने वाले को भी लज्जित होना पडता है।
हमें केवल वाणी पर ही नहीं बल्कि इंद्रियों पर काबू पाकर खान-पान में भी संयम बरतना चाहिए क्योंकि खान-पान में शुद्धता से हमारा स्वास्थ्य ठीक रहता है। यदि स्वास्थ्य ठीक रहेगा तो हमारे आचार-विचार भी शुद्ध रहेंगे।
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