Monday, July 6, 2009

मां लक्ष्मी की तपस्थली बेलवन

वृंदावन मथुरा के यमुना पार स्थित जहांगीरपुरग्राम (डांगौली/ मांट)का बेलवनलक्ष्मी देवी की तपस्थलीहै। यह स्थान अत्यंत सिद्ध है। यहां लक्ष्मी माता का भव्य मंदिर है। इस स्थान पर पौषमाह में चारो ओर लक्ष्मी माता की जय जयकार की गूंज सुनाई देने लग जाती है। दूर-दराज के असंख्य श्रद्धालु यहां अपनी सुख-समृद्धि के लिए पूजा-अर्चना करने आते हैं। यहां पौषमाह के प्रत्येक गुरुवार को विशाल मेला जुडता है। प्राचीन काल में इस स्थान पर बेल के वृक्षों की भरमार थी। इसी कारण यह स्थान बेलवनके नाम से प्रख्यात हुआ। कृष्ण-बलराम यहां अपने सखाओं के साथ गायें चराने आया करते थे। श्रीमद्भागवत में इस स्थान की महत्ता का विशद् वर्णन है। भविष्योत्तरपुराण में इसकी महिमा का बखान करते हुए लिखा है: तप: सिद्धि प्रदायैवनमोबिल्ववनायच।जनार्दन नमस्तुभ्यंविल्वेशायनमोस्तुते॥

भगवान् श्री कृष्ण ने जब सोलह हजार एक सौ आठ गोपिकाओं के साथ दिव्य महारासलीला की तब माता लक्ष्मी देवी के हृदय में भी इस लीला के दर्शन करने की इच्छा हुई और वह बेलवनजा पहुंची, परंतु उसमें गोपिकाओं के अतिरिक्त किसी अन्य व्यक्ति का प्रवेश वर्जित था। अत:उन्हें ललिता सखी ने यह कह कर दर्शन करने से रोक दिया कि आपका ऐश्वर्य लीला से सम्बन्ध है, जबकि वृंदावन माधुर्यमयीलीला का स्थान है। अत:लक्ष्मी माता वृंदावन की ओर अपना मुख करके भगवान् श्रीकृष्ण की आराधना करने लग गईं। भगवान् श्रीकृष्ण जब महारासलीला करके अत्यंत थक गए तब लक्ष्मी माता ने अपनी साडी से अग्नि प्रज्वलित कर उनके लिए खिचडी बनाई। इस खिचडी को खाकर भगवान् श्रीकृष्ण उनसे अत्यधिक प्रसन्न हुए।

लक्ष्मी माता ने जब भगवान् श्रीकृष्ण से ब्रज में रहने की अनुमति मांगी तो उन्होंने उन्हें सहर्ष अनुमति प्रदान कर दी। यह घटना पौषमाह के गुरुवार की है। कालान्तर में इस स्थान पर लक्ष्मी माता का भव्य मंदिर स्थापित हुआ। इस मंदिर में मां लक्ष्मी वृंदावन की ओर मुख किए हाथ जोडे विराजितहैं।

साथ ही खिचडी महोत्सव आयोजित करने की परम्परा भी पडी। इसी सब के चलते अब यहां स्थित लक्ष्मी माता मंदिर में खिचडी से ही भोग लगाए जाने की ही परंपरा है। यहां पौषमाह में प्रत्येक गुरुवार को जगह-जगह असंख्य भट्टियां चलती हैं। साथ ही हजारों भक्त-श्रद्धालु सारे दिन खिचडी के बडे-बडे भण्डारे करते हैं। इस मंदिर दर्शन हेतु पौषमाह के अलावा भी वर्ष भर भक्त-श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। ब्रज चौरासी कोस की हरेक परिक्रमा भी इस स्थान पर अनिवार्य रूप से आती है।

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