ब्रह्मा, विष्णु, महेश निवास करते हैं पीपल में। क्या महिमा है इस वृक्ष की, आइए जानें।
पीपल को हिंदी में पीपरऔर पीपल, बांग्ला में आशुदगाछ,मराठी में पिंगल, गुजराती में पिपलो,नेपाली में पिप्पली,अरबी में थजतुल-मुर्कअश,फारसी में दरख्तेलस्भंग,बौद्ध साहित्य में बोधिवृक्ष, संस्कृत में अश्वत्थ और अंग्रेजी में फिगट्रीया बो ट्रीके नाम से जाना जाता है।
वेदों में पीपल का कई बार नाम लिया गया है। पुराणों में भी इस वृक्ष की महिमा का वर्णन हुआ है। मान्यता है कि पीपल के पेड में ब्रह्मा,विष्णु, महेश निवास करते हैं। इसलिए यह वृक्ष न केवल गाय और ब्राह्मण के समान पावन माना जाता है, बल्कि पूजनीय भी।
भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं को पीपल का वृक्ष माना है। इसलिए धर्मशास्त्रों में पीपल के पत्तों को तोडना वर्जित माना गया है। शास्त्रों के अनुसार, जो लोग अश्वत्थ वृक्ष की पूजा वैशाख माह में करते हैं और जल भी अर्पित करते हैं, उनका जीवन पापमुक्तहो जाता है। यह रोगों का भी विनाश करता है। पीपल के औषधीय गुण का उल्लेख सुश्रुत संहिता, चरक संहिता में किया गया है। वैदिक काल में यज्ञ करने के लिए स्वयं अग्नि को प्रज्वलित करना पडता था। इसका अर्थ यह हुआ कि पहले से जलती हुई आग से यज्ञ नहीं किया जाता था।
यज्ञ में अग्नि उत्पन्न करनेवालावृक्ष पीपल होता था। उसे शमी गर्भ के नाम से पुकारा जाता था। इसकी लकडियों में घर्षण किया जाता था, जिससे अग्नि उत्पन्न होती थी। साथ ही, अग्नि मंत्रों का उच्चारण किया जाता था।
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