ब्रजमंडलमें भगवान श्रीकृष्ण और भगवती राधा की लीलाओं के अनेक स्थान हैं। उनमें राधा-कुंड की बडी चर्चा और महिमा सुनने को मिलती है। वैसे, यहां साल भर तीर्थयात्री आते रहते हैं, लेकिन कार्तिक मास के कृष्णपक्ष की अष्टमी की अर्द्धरात्रि में हजारों लोग बडी श्रद्धा से उसमें स्नान करते हैं। मान्यता है कि कार्तिक-कृष्ण-अष्टमी की मध्यरात्रि में ही राधाकुंडबना था। राधा का परिहास कहते हैं कि द्वापर युग में कंस ने वृष [सांड] रूपधारीअरिष्टासुरको श्रीकृष्ण का वध करने के लिए गोकुल भेजा था। भला भगवान को कौन मार सकता है, उल्टे श्रीकृष्ण ने ही अरिष्टासुरको मार डाला। अरिष्टासुरका वध करने के बाद जब योगेश्वर श्रीकृष्ण रात्रि में रासलीला के लिए निकुंज पहुंचे, तब गोपियों से घिरीं राधाजीने उनसे परिहास किया, आज तुमने एक सांड [गोवंश] की हत्या की है, इसलिए तुम्हें गोहत्या का पाप लगा है। पृथ्वी के सभी तीर्थो में स्नान करने के बाद ही तुम दोष-मुक्त हो सकोगे। तुम्हारे शुद्ध होने पर ही हम लोग तुम्हारे साथ रासलीला में भाग लेंगे। इस पर श्रीकृष्ण बोले, मैं ब्रज छोडकर अन्यत्र कहीं नहीं जाऊंगा। मैं सभी तीर्थो को ब्रज में बुला लेता हूं। ऐसा कहकर श्रीकृष्ण ने अपने पैर की एडी की चोट से एक विशाल कुंड का निर्माण किया और उसमें पृथ्वी के सब तीर्थो का आह्वान किया।
कहते हैं कि सभी तीर्थ जल रूप में उस कुंड में प्रवेश कर गए। तीर्थो के निर्मल जल से परिपूर्ण वह कुंड श्यामकुंड के नाम से प्रसिद्ध हो गया। श्रीकृष्ण उस कुंड में स्नान करके राधारानीके सामने इठलाते हुए पहुंचे, तो वे तुनककर सखियों के साथ पास में ही अपने हाथ के कंगन की सहायता से एक अन्य कुंड बनाने में जुट गई।
राधारानीका कुंड तैयार हो गया, लेकिन उसमें जल न था। सरोवर में पानी भरने के लिए उन्होंने सखियों के साथ ब्रज के अन्य जलाशयों से पानी लाने का विचार किया। इधर श्यामकुंडमें उपस्थित तीर्थो के हृदय में यह भावना उठी कि उन्हें राधाजीके बनाए कुंड में भी स्थान मिल जाए, तभी ब्रज में उनका आगमन सार्थक होगा। भगवान श्रीकृष्ण तीर्थो की मनोकामना जान गए। उन्होंने तीर्थो को इसकी अनुमति मांगने के लिए राधाजीसे स्वयं प्रार्थना करने को कहा। तीर्थो की आराधना से प्रसन्न होकर भगवती राधा ने उन्हें अपने कुंड में आने की अनुमति दे दी। करुणामयी देवी की स्वीकृति पाते ही आनन-फानन में सभी तीर्थ श्यामकुंडकी सीमा तोडकर राधाकुंड में प्रवेश पा गए। श्यामकुंडकी तरह राधाकुंडभी सब तीर्थो के जल से भर गया। कालीखेतऔर गौरीखेत द्वापरयुगमें बने राधाकुंडऔर श्यामकुंडश्रीकृष्ण के द्वारकाजाने के बाद लुप्त हो गए। उनके प्रपौत्र [परपोते] महाराज वज्रनाभने शांडिल्य ऋषि के मार्गदर्शन में इन कुंडों का उद्धार किया, लेकिन कालान्तर में ये दोनों कुंड पुन:लुप्त हो गए। आज से 493वर्ष पूर्व विक्रम संवत 1573में जब श्रीचैतन्यमहाप्रभु ब्रजमंडलकी यात्रा करते हुए यहां पधारे, तब उन्होंने स्थानीय लोगों से इन दोनों कुंडों के बारे में पूछा।
ग्रामीणों ने उन्हें बताया कि यहां कालीखेतएवगौरीखेतहैं, जहां कुछ जल है। कहा जाता है कि महाप्रभु ने अपनी दिव्यदृष्टि से देखा, तो पहचान गए कि कालीखेतश्यामकुंडऔर गौरीखेतराधाकुंडहैं। चैतन्य महाप्रभु के निज धाम जाने के बाद जगन्नाथपुरीसे श्रीरघुनाथदासगोस्वामी राधाकुंडआकर भजन करने लगे। एक समय मुगल सम्राट अकबर अपनी सेना के साथ इस रास्ते से कहीं जा रहे थे। सैनिक और जानवर बहुत प्यासे थे। बादशाह ने गोस्वामी जी से पानी के विषय में पूछा, तो उन्होंने कालीखेतऔर गौरीखेतकी ओर इशारा किया। अकबर ने वहां देखा, तो उसे लगा कि इतने छोटे सरोवरों से उसकी सेना की प्यास नहीं बुझ सकेगी। यह देखकर आश्चर्यचकित हो गया कि संपूर्ण सेना और जानवरों के पानी पी लेने के बाद भी इसमें जल का स्तर जरा भी नहीं गिरा। आहा वोही राधाकुंडके निर्माण के समय राधारानीके साथ जुटी गोपियों ने उत्साहित होकर मुख से आहा वोहीशब्द का उच्चारण किया, जो बाद में अपभ्रंशहोकर अहोई बोला जाने लगा। राधाकुंडका निर्माण कार्तिक-कृष्ण-अष्टमी की अर्द्धरात्रि में होने के कारण यह तिथि अहोई अष्टमी कहलाई। इसका दूसरा नाम बहुला अष्टमी भी है। राजसूय यह कुंड भगवान कृष्ण को भी अतिप्रियहै।
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