आधुनिक जीवन अत्यधिक असंतोषजनक बनता जा रहा है। यह हमें प्रसन्नता नहीं प्रदान करता। इसमें बहुत सी जटिलताएं हैं, बहुत सी इच्छाएं हैं। हम अत्यधिक आवश्यकताओं से स्वयं को मुक्त करें और ईश्वर के साथ अधिक समय व्यतीत करें। अपने जीवन को सरल बनाएं। अपने अंतर में, अपनी आत्मा से प्रसन्न रहें। हम अपने बचे हुए समय को ध्यान में लगाएं, जो ईश-संपर्क प्रदान करता है तथा शांति एवं प्रसन्नता रूपी जीवन की वास्तविकताओंकी प्राप्ति में सच्ची प्रगति प्रदान करता है।
अपना जीवन सरल बनाएं और उतने में ही आनन्द लें जो हमें ईश्वर ने दिया है। अपना खाली समय स्वाध्याय में लगाएं। ईश्वर की मौन वाणी समस्त प्राणी-जगत का आधार है,धर्म-ग्रन्थों के माध्यम से और हमारे अंत:करण के माध्यम से सदा हमें पुकारती रहती है। चिरस्थायी आनंद प्राप्ति के लिए भौतिक धन-संपदा पर विश्वास करना उचित नहीं है। सरल जीवन के द्वारा हमें सर्वसंतुष्टिदायकप्रसन्नता प्राप्त होती है। सादगी का अर्थ है इच्छाओं और आसक्तियोंसे मुक्त रहना और आंतरिक रूप से परमानन्द में मग्न रहना। सरलता से जीवनयापन करने के लिए हमें प्रबल मन और अदम्य इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है। इसका अर्थ यह नहीं कि हम अभाव में रहें, बल्कि हम उसी के लिए प्रयास करें और उसी में संतोष करें जिस चीज की हमें वास्तव में आवश्यकता है। जब हमारी अंतरात्मा मानसिक रूप से सांसारिक वस्तुओं का परित्याग कर देती है, तो हमें स्थायी रूप से संतुष्टि करने वाले आनंद की प्राप्ति होने लगती है। जब हम ईश्वर की इच्छा के अनुसार अपने कर्मो का चयन करते हैं, तो जीवन सरल हो जाता है। यदि हम अपना मन निर्मल रखें, तो हम सदा ईश्वर को अपने साथ पाएंगे। हम अपने प्रत्येक विचार में उनकी झलक देखेंगे। एक निर्मल हृदय निर्मल विचारों का परिणाम होता है। हम स्वयं एक छोटे बच्चे के समान सरल बनकर,आसक्ति रहित,सच्चा एवं भोला बनकर ब्रह्म चैतन्य प्राप्त करने की चेष्टा करके उस दिव्य अवस्था को प्राप्त कर सकते हैं। भक्त अंत: प्रज्ञा से परिपूर्ण हो जाता है जो शिशु समान निष्कपट होता है, संशय रहित होता है, सत्यनिष्ठा से पूर्ण होता है तथा विनम्र एवं ग्रहणशील होता है। ऐसा भक्त ईश्वर को प्राप्त करता है।
1 comment:
सुन्दर लेखन ....।
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