Saturday, December 27, 2008

पहले हम स्वयं बनें पात्र

सोचा हुआ नहीं, किया हुआ कर्म काम आता है

यह सच है कि समाज में सोचने वाले व्यक्तियों की संख्या अधिक है, लेकिन एक सच यह भी है कि उस सोच को अपने जीवन में ढालने वाले लोग कम ही हैं। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा व्यक्ति हो, जो यह कहे कि मुझे सफलता नहीं चाहिए। लेकिन लाखों लोग ऐसे भी होंगे, जो सफलता प्राप्त करने के लिए प्रयास नहीं करना चाहते होंगे। हालांकि सच्चाई यह है कि बिना प्रयास किए हुए किसी भी व्यक्ति को सफलता मिल ही नहीं सकती।

वैसे, कुछ पाने के लिए कुछ खोना भी पडता है। इसलिए जो लोग सफलता का रहस्य जानना चाहते हैं, वे शीघ्र पात्र बनने का प्रयास करें। दरअसल, सफलता पाने के लिए पात्रता आवश्यक है, लेकिन प्रश्न यह है कि पात्र बनें कैसे? इसे हम एक उदाहरण से समझ सकते हैं। जिस प्रकार हम पानी प्राप्त करने के लिए गड्ढा खोदते हैं, उसी प्रकार हमें अपनी संकल्प शक्ति से मन की भूमि में भी गड्ढा खोदना चाहिए। इससे हम सफलता का अमृत-कण प्राप्त कर सकेंगे। इसी अमृत-कण की ऊर्जा से हमारे जीवन के विकार नष्ट होंगे और हमारी कुंठाएंभी समाप्त हो जाएंगी।

साथ ही, हमारी संकल्प-शक्ति भी दृढ होगी। लेकिन यह तभी संभव होगा, जब हम स्वयं निर्णय ले सकेंगे कि किस कार्य को करने से सफलता मिलेगी।

दरअसल, जब हम सफलता चाहेंगे, यानी सफलता पाने की इच्छाशक्ति ही होती है, तो निश्चित रूप से सफलता मिलेगी। जो लोग आज सफल हैं, वास्तव में उनकी सफलता के पीछे उनकी दृढ इच्छाशक्ति है। वहीं दूसरी ओर, जो लोग न तो प्रयास करते हैं और न ही दृढ इच्छाशक्ति रखते हैं, उन्हें हमेशा असफलता ही हाथ लगती है। इसलिए हमारी इच्छा महत्वपूर्ण है। सच तो यह है कि सफल व्यक्ति यह मान लेते हैं कि उसे सफलता मिलनी तय है। इसलिए वे उसी के अनुरूप अपना आचरण और व्यवहार भी करने लगते हैं।

सच तो यह है कि वे सफलता प्राप्त करने सेपहलेही मानसिक रूप से खुद को सफल मान लेते हैं। ऐसी ही मानसिकता उसे सफल व्यक्ति की तरह आचरण करने के लिए प्रेरित करती रहती है और उसे रास्ते से डिगने नहीं देती है। यदि हम अपने जीवन को सुखी बनाने के लिए सफल होना चाहते हैं, तो पहले उस जीवन को जीने योग्य बनाना चाहिए। वास्तव में, यदि लक्ष्य की प्राप्ति के लिए सुमार्ग पर चला जाए, तो हम खुद-ब-खुद सफलता प्राप्त करने के पात्र बन जाते हैं। कहने का मतलब यही है कि हम जब चाहें, अपने संकल्प-पात्र में सफलता की बीज को अंकुरित कर सकते हैं, क्योंकि सफलता की बीज के अंकुरण के लिए आधार की आवश्यकता भी होती है।

दरअसल, यही आधार हमारा संकल्पमयजीवन है। यदि हम प्रतिक्षण दूसरों की भलाई, कल्याण कार्य आदि के लिए प्रयासरत रहेंगे, तो हमें पता चल सकेगा कि जीवन जीने की विधि क्या है? जीवन को सुंदर कैसे बनाया जाए? क्योंकि हमें सफलता भी जीवन को सुंदर बनाने के लिए ही मिलती है।

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