संसार में प्रत्येक वस्तु के बनने या बनाने के पीछे कुछ न कुछ उद्देश्य अवश्य होता है, जिसमें उस वस्तु की विशेषताएं और लाभ छिपे होते हैं। भारत में मंदिरों के बनने के पीछे भी अपने उद्देश्य एवं लाभ हैं, जिसे सिर्फ पूजा-अर्चना का साधन मानकर नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है। सच तो यह है कि कुछ लोग मंदिरों को ईश्वर प्राप्ति का साधन मानते हैं, तो कुछ के विचार में यह असीम शांति का स्त्रोत-स्थल है। ईश्वर की उपस्थिति
कहते हैं ईश्वर की उपस्थिति चारों दिशाओं यहां तक कि प्रकृति के कण-कण में है। मनोविज्ञान के अनुसार, जब तक उसे कोई वस्तु दिखती नहीं है, तब तक वह उस पर विश्वास नहीं कर पाता है। इसलिए मूर्तियां बनाई गई और उसे एक निश्चित स्थान पर स्थापित किया गया। वैसे, जिस तरह इनसान घरों में रहते हैं, ठीक उसी तरह उन्होंने ईश्वर को मूर्ति के रूप में मंदिरों में स्थापित किया। जहां श्रद्धालुगण ईश्वर से मिलने और पूजा-अर्चना के लिए जाते हैं। सच तो यह है कि हर मंदिर के बनने के पीछे अपनी एक अलग कहानी होती है। दरअसल, मंदिर का निर्माण उन्हीं स्थानों पर किया गया, जहां उस मंदिर से संबंधित देवी-देवता का कुछ नाता रहा है, जैसे, कोई स्थान किसी देवी-देवता की जन्मस्थली मानी गई, तो किसी स्थान पर ईश्वर के पद-चिह्नों की बात बताई गई। इसलिए लोगों का उस स्थान के प्रति अगाध प्रेम होता है। उसी प्रेम एवं आस्था को प्रदर्शित करने के लिए लोगों ने उस स्थान पर भजन-कीर्तन और पूजा-अर्चना शुरू कर दी। और धीरे-धीरे उस स्थान के ईट और पत्थरों ने मंदिर की शक्ल ले ली।
मूर्तियों की उपासना बिना मूर्ति के मंदिरों की कल्पना ही नहीं की जा सकती है, क्योंकि इन्हीं मूर्तियों के सामने लोग अपनी मुरादें मांगते हैं, अपनी झोली फैलाते हैं, फल-फूल चढाते हैं और भक्ति भाव से पूजा-पाठ करते हैं। अब प्रश्न यह उठता है कि क्या मूर्तियां किसी का दुखडा सुनती हैं? क्या इन मूर्तियों के आगे नमन करने से मन को शांति मिलती है?
श्रद्धा की नजर से देखने वाले कहते हैं कि जाकी रही भावना जैसी, प्रभु सूरत देखी तन वैसी, या मानो तो शंकर, अन्यथा कंकर। इनके पीछे सच्चाई जो भी हो, लेकिन मंदिर में ईश्वर की मूर्तियां इनसान को झुकना सिखाती हैं और उनमें सेवा-भाव का संचरण भी करती हैं। बेहतर स्वास्थ्य
जहां मूर्तियां होती हैं, वहां पूजा-पाठ, आरती, भजन-कीर्तन, मंत्रोच्चारण, परिक्रमा आदि आवश्यक है। वैसे, जो लोग रोज मंदिर जाते हैं, उनके जीवन में एक तरह की नियमितता,संतुलन और समयनिष्ठताआती है, जिससे उनके व्यक्तित्व में निखार भी आता है।
सच तो यह है कि मंदिर जाने से मनुष्य का सबसे बडा शत्रु आलस्य दूर भाग जाता है। रोज मंदिर तक पैदल चलने से न केवल शरीर का व्यायाम हो जाता है, बल्कि ताली बजाते-बजाते मंदिरों की परिक्रमा करने, कीर्तनों में ढोलक, मंजीरा, घंटा आदि बजाने से शरीर का रक्त-संचार और रक्त-चाप भी संतुलित रहता है। डॉक्टरों का मानना है कि ऐसा करने से न सिर्फ शरीर निरोग रहता है, बल्कि यह एक्यूप्रेशर का काम भी करता है। एक्यूप्रेशर कुछ और नहीं, बल्कि हमारी हथेली और तलवों पर दबाव डालने से रोगों को ठीक करने की चिकित्सा पद्धति का ही एक नाम है। आपसी प्रेम और रीति-रिवाज
प्राचीन काल में हम सभी लोग मिलकर मंदिरों में त्योहार मनाते थे, जिससे प्रेम और आपसी सद्भावना भी बढती थी। हां, ये त्योहार एक-दूसरे से मिलने, जानने और करीब आने का मौका देते थे। मंदिरों में रीति-रिवाज के साथ उत्सव मनाने से लोगों को पूजा व त्योहारों का धार्मिक और मनोवैज्ञानिक अर्थ भी समझ में आ जाता था।
दरअसल, आज के भौतिक जीवन में अत्यधिक व्यस्तता की वजह से लोग अब मंदिर कम ही जा पाते हैं। यही वजह है कि लोग अपनी परम्परा व संस्कृति को भूलते जा रहे हैं और कहते हैं इसलिए आपसी संबंध भी दम तोड रहे हैं। शांति और ज्ञान की तलाश
मन की शांति पाने के लिए बाहर के वातावरण का शांत होना बहुत जरूरी है और मंदिर इनसान को एक ऐसा ही वातावरण देता है। दरअसल, घर, दफ्तर-बाजार आदि के शोरगुल से दूर मंदिर हमें चिंतन-मनन करने के लिए पर्याप्त अवसर देता है। मंदिर की बनावट, वास्तु और वहां की शांति मनुष्य को बाहरी ही नहीं, बल्कि आंतरिक शांति भी देती है।
मंदिर सदा से ही ज्ञान के स्रोत रहे हैं। वैसे, आध्यात्मिक एवं धार्मिक जगत से संबंधित ज्ञान के लिए विद्वान और पुस्तक का सहारा लेना जरूरी होता है। हालांकि आज टीवी और रेडियो भी हैं, लेकिन पहले प्रवचन आदि सुनने के लिए मंदिर ही एक मात्र जरिया होता था। मंदिर के पंडित या साधु-संत ही शास्त्रों, वेदों, पुराणों आदि की गूढ बातों को समझा सकते थे। यही नहीं, प्रार्थना के लाभ, देवी-देवता की स्तुति, धार्मिक ग्रंथों आदि की जानकारी और ज्ञान मनुष्यों को मंदिरों में जाकर ही मिलता था। संस्कृति एवं सभ्यता
मंदिर किसी देश के धर्म, देवी-देवता आदि को ही नहीं, बल्कि उस देश के संस्कार, कला, संस्कृति, परंपरा और सभ्यता को भी दर्शाते हैं, ताकि उस मंदिर से जुडने वाले देशी-विदेशी श्रद्धालु, उस देश के महत्व और सौंदर्य को भी समझ सकें। मंदिर की दीवार पर चित्रित तस्वीरें या स्थापित मूर्तियां उस काल की सभ्यता और कला को दर्शाते हैं। वैसे, किसी देश या प्रदेश की संस्कृति को जन्म देने में मंदिरों का भी काफी सहयोग होता है।
वास्तव में, मंदिरों के कारण भी भारत विविधताओं का देश कहा जाता है। विश्व में भारत ही एक ऐसा देश है, जो अपनी सभ्यता एवं संस्कृति के कारण अतुलनीय है। यहां के तीज-त्योहार, कला, ज्ञान, नीति, वास्तु-ज्योतिष आदि अपने आप में अद्भुत और अनूठे हैं। प्राचीन काल में बने मंदिर भारत की संस्कृति और सभ्यता को प्रदर्शित करते हैं, जिसे देखने, जानने और शोध करने के लिए विदेशियों का आवागमन लगा ही रहता है।
श्रद्धा और विश्वास के प्रतीक मंदिर पर्यटकों के लिए आकर्षणकाकेंद्र भी होते हैं, जिससे न केवल भारत की कला का पूरे विश्व में प्रचार-प्रसार होता है, बल्कि इनके दर्शन से जुडे सभी माध्यमों से सरकार भी लाभान्वित होते हैं।
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