एक अच्छे इनसान में सहजता अनिवार्य गुण है। जो व्यक्ति सहज भाव से अपने लक्ष्य के प्रति निरंतर प्रयासरत रहते हैं, वे अपने जीवन में बहुत आगे जाते हैं।
कहा भी गया है-
जहां लोग पहुंचे छलांगें लगाकर,
वहां हम भी पहुंचे मगर धीरे-धीरे। सहजता का अनुसरण करने वाले पथिक जीवन में कभी भी पिछडते नहीं हैं। सच तो यह है कि एक ही झटके में शिखर पर पहुंचने में आनंद कहां मिलता है? अब प्रश्न यह उठता है कि कुछ लोग सहज होते हुए भी अपेक्षित सफलता क्यों नहीं हासिल कर पाते हैं? वे जीवन में क्यों पिछड जाते हैं? क्या ऊपर से सहज दिखने वाले व्यक्ति वास्तव में सहज होते भी हैं या नहीं?
कई बार कुछ व्यक्ति ऊपर से सहज जरूर दिखाई पडते हैं, लेकिन वास्तव में, वे सहज नहीं होते हैं। उस व्यक्ति के मन में द्वंद्व-पीडा और राग-द्वेष का एक तूफान चलता रहता है। दरअसल, यह उनके अंदर नकारात्मक भावों का तूफान होता है, लेकिन बाहर से वे सहजता का भाव प्रदर्शित करने का प्रयास करते रहते हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि बाहर की खामोशी अभिनय मात्र है। अब यदि अभिनय ही करना है, तो आंतरिक शांति का अभिनय करना चाहिए। बाहर की खामोशी बेकार है। दूसरी ओर, यदि कोई व्यक्ति बाहर से मुखर है, तो यह बुरी बात नहीं है, क्योंकि बाहर की मुखरताआंतरिक शांति प्रदान कर सकती है। यदि आप बाहर से मुखर हैं, हंस रहे हैं, काम कर रहे हैं, प्रसन्नता व पीडा दोनों की स्वाभाविक अभिव्यक्ति प्रगट कर रहे हैं, हर भाव को व्यक्त कर रहे हैं, लेकिन मन में अशांति हावी नहीं है, तो यही वास्तविक सहजता है।
सच तो यह है कि बाहरी मुखरताऔर चंचलतासे ही अंदर की सहजता प्राप्त की जा सकती है। किसी भी प्रकार का शारीरिक श्रम, व्यायाम, योगासन, खेल-कूद, शिल्प और कलाएं आंतरिक सहजता प्राप्त करने में सहायक हो सकती हैं। अक्सर हम देखते हैं कि किसान और मजदूर प्राय: अंदर से काफी सहज होते हैं, जबकि तथाकथित बुद्धिजीवी या प्रोफेशनल्सकभी-कभी ऊपर से सहज जरूर दिखते हैं, लेकिन वास्तव में वे अंदर से उतने ही असहज होते हैं। उनकी असहजताकी वजह मानसिक अशांति, तनाव, दबाव और द्वंद्व भी हो सकता है। ऐसी स्थिति मेयदि यह कहें कि जब तक भौतिक शरीर की जडता श्रम से समाप्त नहीं हो जाती है, तब तक आंतरिक सहजता संभव नहीं है, तो शायद गलत नही होगा। यह सच है कि शुरुआत में आपको सहज होने में कठिनाई हो सकती है। उदाहरण के लिए यदि आप कोई कार्य कर रहे हैं, तो उसमें बार-बार गलती हो सकती है। इसलिए उसे ठीक करने का सबसे आसान तरीका है कि उसे और अधिक सहज रूप से कीजिए। आप उसे अपनी स्वाभाविक गति से भी धीमी गति से कीजिए। इस सहजता से जो आंतरिक विकास और एकाग्रता हासिल होती है, वह कार्य को और बेहतर करने की क्षमता प्रदान करती है।
यदि आपको कोई विषय ज्यादा मुश्किल लगता है, तो उस विषय को बिल्कुल प्रारंभ से दोबारा शुरू कीजिए। जहां आप अटक रहे हैं, दो-तीन बार अभ्यास करें, लेकिन सभी कार्यो को पूरा करने में सहजता का गुण अनिवार्य है। सच तो यह है कि असहजताके कारण ही समस्याएं उत्पन्न होती हैं। दरअसल, सहजता में ही सौंदर्य का वास होता है। कली से फूल बनने में सहजता है, तभी फूल में असीम सौंदर्य व्याप्त होता है। यदि आप जोर-जबर्दस्ती कर सौंदर्य को निखारना चाहेंगे, तो यह संभव नहीं है। वास्तव में, कला या सौंदर्य के लिए अपेक्षित है सधे हुए हाथों से कार्य करना, अर्थात सहजता, जिसे हम तहजीब भी कह सकते हैं। जहां सहजता नहीं, वहां कैसी तहजीब और कैसा शिष्टाचार!
इसलिए यदि जीवन को सौंदर्य से लबालब करना है या उसे कलापूर्ण बनाना है, तो सहजता का दामन थामना ही होगा। वह भी बाहरी सहजता का नहीं, बल्कि आंतरिक सहजता का।
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