Friday, March 13, 2009

गौ-दान से मिलती है संकटों से मुक्ति

स्थानीय तीन शक्ति मंदिर में श्रद्धालुओं को प्रवचन देते पंडित भोलानाथ ने कहा कि गाय पृथ्वी का प्रतीक है क्योंकि जिस प्रकार पृथ्वी छोटा बीज डालने पर अन्न का भंडार प्रदान करती है, उसी प्रकार गाय घास खाकर अमृत तुल्य दूध प्रदान करती है। गाय पृथ्वी पर समस्त देवताओं की साक्षात प्रतिनिधि है। इसकी देह के अंग प्रत्यंग में सभी देवी देवता स्थित हैं। भगवान शिव की सवारी धर्म रूपी बैल है जिसके आधार पर भगवान सृष्टि का संचालन करने के लिए सवार होकर विभिन्न आदर्श प्रस्तुत करते हैं। शास्त्रों में भी कहा गया है कि गाय के शरीर में देवताओं का वास व पैरों में तीर्थ स्थल होता है। जब कोई भी मनुष्य गौ- माता की धुली को अपने माथे पर लगाता है तो उसे तत्काल किसी तीर्थ स्थल के जल में स्नान करने जितना पुण्य प्राप्त होता है और सफलता उसके कदम चूमती हैं। जहां पर गाय रहती हैं वह स्थान पवित्र होकर तीर्थ स्थल के समान हो जाता है। ऐसी भूमि पर प्राण त्यागने वाला इंसान तुरंत मुक्ति प्राप्त करता है। गाय सदा रहने वाली पुष्टि का कारण व लक्ष्मी की जड है। गौ माता को जो कुछ दिया जाता है उसका पुण्य कभी नष्ट नहीं होता। जो लोग गौ -दान करते हैं वे सभी संकटों से मुक्त होकर दुष्कर्मो के पाप समूह से भी तर जाते हैं। गाय के सींगों के अग्र भाग में देवराज इंद्र, हृदय में कार्तिकेय, सिर में ब्रह्मा और ललाट में शंकर, दोनों नेत्रों में चंद्रमा और सूर्य, जीभ में सरस्वती, दांतों में मरुद्गण,स्तनों में चारों पवित्र समुद्र, गौ मूत्र में गंगा, गोबर में लक्ष्मी व खुरों के अग्र भाग में अप्सराएं निवास करती हैं। गाय के सींगों में चर व अचर सभी तीर्थ विद्यमान है। ललाट में देवी पार्वती व हुंकार में भगवती सरस्वती का वास है। गालों में यम व यक्ष निवास करते हैं।

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