ब्रह्मचर्य शक्ति का भंडार है, ब्रह्मचर्य शब्द का अर्थ ब्रह्म में चरना, गति करना व ब्रह्म को खाना है। ब्रह्मचर्य रहने से मन, वचन और कर्म तीनों प्रकार के संयम करने से आत्मा स्थिर व शांत होती है और विचारों में शुद्धि की बुनियाद बनती है।
पंडित जी ने कहा कि ब्रह्मचर्य का अर्थ शरीर के रस की रक्षा करना नहीं है। बल्कि किसी भोग्य विषय की ओर प्रवृत्ति करके न जाने का नाम पूर्ण ब्रह्मचर्य है। अखण्ड ब्रह्मचर्य सिद्ध होने से ही मनुष्य आत्म शुद्धि की अंतिम स्थिति तक पहुंच सकता है। आत्म शुद्धि होने पर ही मानव को मोक्ष प्राप्त होता है। ब्रह्मचर्य का नाश ही मृत्यु है और ब्रह्मचर्य का पालन ही जीवन है। भगवान हनुमान ने उम्र भर ब्रह्मचर्य का पालन कर इतिहास में अमरत्व प्राप्त किया। आज भी ब्रह्मचर्य पुरुषों की गिनती में भगवान हनुमान को श्रेष्ठ ब्रह्मचर्य माना गया है।
ब्रह्मचर्य को धारण करने वाले को सदा चार बातों का पालन करना होता है, वह चिंता नहीं करता, भय रहित रहता है, भोग व विकारों से दूर रहता है और कटु वचनों का प्रयोग करता है। ब्रह्मचर्य के पालन से मनुष्य रोगों से मुक्त हो जाता है जिससे वह रूप वान होता जाता है। साथ ही उसकी वाणी मधुर होती जाती है, जिससे वह दूसरों को प्रिय लगने लगता है। इसी कारण वह अन्यों के लिए भी प्रेरणा का स्त्रोत बनता है। ब्रह्मचर्य जीवन सर्व रत्नों की खान है और आत्म शुद्धि का मूल तत्व है जो मनुष्य ब्रह्मचर्य को प्राप्त होकर लोभ नहीं करते वे सब प्रकार के रोगों से रहित होकर धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष को प्राप्त होते हैं। ब्रह्मचर्य की प्रतिष्ठा उसके पालन से होती है और ब्रह्मचर्य मनुष्य विषय विकार जन्य खाद्य पदार्थों दर्शन और स्वर्ण से सुरक्षित रहकर कामादिक होकर अपने उद्देश्य शांति पथ पर चलता हुआ मोक्ष को प्राप्त कर जाता है।
उन्होंने कहा कि जीवन में ब्रह्मचर्य का विशेष महत्व है। ब्रह्मचर्य के पालन से मन शांत, विचारों में शुद्धता आती है। ब्रह्मचर्य करने वाला मानव सदाचार का पालन करता है। संतों के अनुसार ब्रह्मचर्य से मनुष्य में ब्रह्म के तत्व आने प्रारंभ हो जाते हैं और आहिस्ता-आहिस्ता वह ब्रह्म में लीन होता जाता है।
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