Friday, March 13, 2009

कर्म योग ही जीवन का आधार

संसार में प्रत्येक मनुष्य मन व आत्मा से शुद्ध होने के बाद भी अपने कर्म के कारण ही सुख या दुख पाता है। परंतु कर्म करते हुए उसे यह अंदाजा नही होता है कि व सकाम कर्म कर रहा है या निष्काम। यानी बिना ज्ञान के कर्म करते हुए सफल होना चाहता है जो संभव नहीं।

क्योंकि ज्ञान के साथ कर्म करने पर ही जीवन सार्थक बनता है। उक्त विचार मंगलवार को चिन्मयामिशन एवं चिन्मयायुवा केंद्र के निदेशक ब्रहमचारीगोविंद चैतन्य महाराज ने मद्रासीसम्मेलन में व्यक्त किए। चिन्मयामिशन जमशेदपुर एवं मद्रासीसम्मेलन के संयुक्त तत्वावधान में पांच दिवसीय श्रीमद्भागवत प्रवचन की शुरुआत करते हुए स्वामी जी ने गीता के प्रथम एवं दूसरे अध्याय की संक्षिप्त चर्चा करने के बाद तीसरे अध्याय की व्याख्या शुरू की।

उन्होंने बताया कि तीसरा अध्याय कर्मयोग प्रधान है। यानी इसमें ज्ञान योग एवं कर्म योग के एक साथ निर्वहन की जानकारी दी गयी है। उन्होंने कहा कि हम जो भी करते है मन और भावना के कारण करते है। यदि मन व भावना के साथ-साथ दिमाग काम नही करता तो हम मनुष्य नही पशु होते। इसलिए जीवन में कर्म करना उतना महत्वपूर्ण नही जितना ज्ञान के साथ कर्म करना। उन्होंने कहा, गीता में भी भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को कर्मयोगी बनने को कहा है, क्योंकि यही जीवन का आधार है।

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